मप्र में 10 हजार सरकारी स्कूल बंद करने की तैयारी

भोपाल। एक बार फिर मप्र के सरकारी स्कूलों को बंद करने की तैयारियां शुरू हो गईं हैं। इस बार मध्यप्रदेश के 10 हजार स्कूलों को बंद करने का टारगेट सेट किया गया है। इन स्कूलों को विद्यार्थियों की कम संख्या के नाम पर बंद किया जाएगा। स्कूल शिक्षा विभाग बाकायदा सर्वे करा रहा है। सर्वे की रिपोर्ट आने के बाद स्कूलों का बंद करने का प्रस्ताव कैबिनेट में लाया जाएगा। याद दिला दें कि 2016 में भी सरकार ने यही हलचल शुरू की थी। उसके बाद हाईकोर्ट में लगी एक जनहित याचिका में सरकार ने शपथपत्र दिया था कि मप्र में एक भी स्कूल बंद नहीं किया जाएगा। 

प्रदेश में करीब सवा लाख से अधिक प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल हैं। इनमें से अधिकांश स्कूल शिक्षकों और संसाधन की कमी से जूझ रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक कई सरकारी स्कूलों के पास अपने भवन है पर छात्र संख्या बेहद कम है, क्योंकि स्कूलों में संविदा शिक्षक या अध्यापक ही नहीं हैं। वो अतिथि शिक्षकों के भरोसे चलाए जा रहे हैं। इन स्कूलों में अच्छे शिक्षकों की नियुक्ति करने के बजाए स्कूल शिक्षा विभाग सर्वे कराकर इन स्कूलों को बंद करने जा रहा है। इनके छात्र-छात्राओं को समीप के अन्य ऐसे स्कूल में मर्ज किया जाएगा जो पांच किलोमीटर के दायरे में हों। बताया जाता है कि इस संबंध में स्कूल शिक्षा विभाग ने एक प्रस्ताव भी तैयार कर लिया है।

कोई विरोध ना करे इसलिए 
बंद स्कूलों के बच्चों को आसपास के स्कूलों में शिफ्ट किया जाएगा। इन बच्चों के लिए निशुल्क वाहन सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी और छठवीं और आठवीं के बच्चों को साइकिल से स्कूल आने कहा जाएगा। खाली स्कूल भवनों को आंगनबाड़ी और पंचायत विभाग को किराए पर दिया जाएगा और इसे पैसे को इन्फ्रास्ट्रक्चर और सुविधाएं बढ़ाने पर खर्च किया जाएगा।

पॉश कालोनियों के सरकारी स्कूल पहला टारगेट 
शिक्षा विभाग ने बड़े और छोटे शहरों की पॉश कालोनियों के आसपास स्थित सरकारी स्कूलों को पहला टारगेट बनाया है। ऐसे स्कूलों में कालोनियों के आसपास रहने वाली घरेलू सहायिकाओं एवं मजदूरों के बच्चे पढ़ते हैं। स्कूल बंद हो जाने के बाद उन्हे मजबूरी में प्राइवेट स्कूल में दाखिला लेना होगा। याद दिला दें कि शिक्षा के अधिकार कानून के तहत प्राइवेट स्कूल गरीब बच्चों को एडमिशन नहीं देते। देते भी हैं तो कई तरह की फीस थोप देते हैं। 

दीपक जोशी, राज्यमंत्री स्कूल शिक्षा का बयान 
जिन स्कलों में छात्र संख्या बेहद कम है उन्हें बंद करने पर विचार किया जा रहा है। इन स्कूलों के बच्चों को आसपास के स्कूल में शिफ्ट किया जाएगा। यह शिक्षा के स्तर को गुणवत्तायुक्त बनाने के लिए किया जा रहा है। स्कूलों के खाली भवनों को हम आंगनबाड़ी और पंचायत विभाग को किराए पर देने पर भी विचार कर रहे हैं।

क्या हुआ था 2016 में 
सामाजिक कार्यकर्ता तपन भट्टाचार्य की ओर से वकील आनंद मोहन माथुर द्वारा मप्र हाईकोर्ट की इंदौर बैंच में दायर याचिका में कहा गया था कि प्रदेश सरकार शिक्षा और मेडिकल सेवाओं को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर रही है। आलीराजपुर जिले में स्वास्थ्य सेवाओं को एक निजी संस्था को सौंप दिया गया है। जनवरी के पहले पखवाड़े में सरकार ने प्रदेश के 90 फीसदी सरकारी स्कूलों को बंद करने का फैसला लिया था। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं देना सरकार की जिम्मेदारी है। इसे निजी हाथों में नहीं सौंपा जा सकता। 

पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने शासन को जवाब देने के आदेश दिए थे। वकील माथुर ने बताया कि मंगलवार को उन्हें शासन के जवाब की प्रति मिल गई। शपथ-पत्र पर पेश जवाब में शासन ने कहा कि प्रदेश में एक भी सरकारी स्कूल को बंद नहीं किया जाएगा। 

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