
श्री यादव ने कहा कि वित्तमंत्री यह स्पष्ट क्यों नहीं कर सके कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता कैसे और कब आयेगी व एक निश्चित अवधि में हालात कब सामान्य होंगे। उन्होंने कहा कि किसी ठोस नीति के अभाव में बजट प्रावधानों को सिर्फ और सिर्फ आंकड़ेबाजी के आधार पर गढ़ा गया है। नोटबंदी और महंगाई की मार से पीडि़त आमजनों को बजट से निराशा ही हाथ लगी है।
श्री यादव ने 01 लाख करोड़ के राष्ट्रीय रेल सुरक्षा फंड बनाये जाने को हास्यास्पद बताते हुए कहा कि कोशिश यह की जानी चाहिए थी कि रेल दुर्घटनाओं की रोकथाम कैसे हो। शायद सरकार की रूचि रेल दुर्घटनाओं की रोकथाम करने के बजाय मृतकों को मुआवजा देने में ज्यादा है। आम बजट में मप्र के हितों का संवर्द्धन नहीं किया जाना भी प्रदेश को लेकर केन्द्र के उपेक्षाभाव को दर्शा रहा है।
श्री यादव ने समूचे देश में किसानों की हो रही बर्बादी और आत्महत्या जैसी घटनाओं को दृष्टिपात करते हुए उनके लिए बजट में विशेष प्रावधानों को नहीं किये जाने पर भी गंभीर आपत्ति जताते हुए कहा कि इससे मोदी सरकार का किसान विरोधी चरित्र सामने आ गया है। तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा गरीबों के हितार्थ लागू की गई मनरेगा के लिए वर्ष 2017-18 में 48 हजार करोड़ रूपयों का प्रावधान तो किया गया है, किन्तु इस बड़ी राशि के पारदर्शी उपयोग और इसमें हो रहे भ्रष्टाचार व धांधली को थामने के लिए कोई भी प्रयास नहीं किया जाना संदेहास्पद है।
श्री यादव ने अपनी प्रतिक्रिया के अंत में कहा कि कुल मिलाकर यह बजट आने वाले दिनों में भारतीय अर्थव्यवस्था को तहस-नहस करते हुए बेलगाम बढ़ती जा रही महंगाई की रोकथाम को लेकर असफल ही साबित होगा।