दलितों की पार्टी में दलितों को ही टिकट नहीं | BSP LATEST

UP ELECTION NEWS/LUCKNOW | यूपी में इस बार दलित सिर्फ बीएसपी को वोट दे सकेंगे, चुनाव लड़ने के तो वो सपने भी नहीं देख सकते। दलितों के कंधों पर खड़ी हुई बहुजन समाज पार्टी की चीफ मायावती ने सीएम की कुर्सी तक पहुंचने के लिए दलितों के साथ ही भेदभाव कर डाला। उन्होंने सबसे ज्यादा 113 टिकट सवर्णों को दिए हैं। उसमें भी 66 टिकट ब्राह्मणों को दिए गए हैं, जिनका हर कीमत पर विरोध करना बसपा का धर्म हुआ करता था। 

यूपी में मायावती ने तिलक को 66, तराजू को 11 और तलवार को 36 टिकट दिए हैं। अब वो इनमें जूते मारने के बजाए इन्हे मान सम्मान दे रहीं हैं। इसके बाद 106 ओबीसी नेताओं को उन्होंने उम्मीदवार बनाया है। मुस्लिम वोटबैंक में सेंधमारी की जा सके इसलिए उन्होंने 97 टिकट मुसलमान नेताओं को भी दे दिए। सबसे कम 87 टिकट दलित नेताओं को मिले हैं। अर्थ यह कि दलितों की पार्टी में अब दलित नेताओं के लिए टिकट ही नहीं बचे। शायद बसपा के लिए भी अब दलित वोटबैंक मात्र रह गए हैं। 

पूरा फोकस सीएम की सीट पर 
बीएसपी सुप्रीमो ने प्रदेश की सभी विधानसभा सीटों में वोटरों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए अपने उम्मीदवारों का चयन किया है। यही वजह है कि मायावती ने प्रदेश में सभी जातियों को साधने की कोशिश की है। आंकड़ों पर गौर करें तो प्रदेश में गैर यादव ओबीसी वोटर करीब 32 फीसदी हैं। 8 फीसदी यादव ओबीसी हैं। सवर्ण हिंदुओं की बात करें तो प्रदेश में 20 फीसदी वोटर हैं। दलित वोटर 20 फीसदी हैं। इनमें 9 फीसदी जाटव व 11 फीसदी अन्य हैं। प्रदेश में मुस्लिम वोटर करीब 20 फीसदी हैं। यही वजह है बीएसपी ने मुस्लिम उम्मीदवारों को दलित उम्मीदवारों से ज्यादा तरजीह दी है। 

समाजवादी दंगल का फायदा उठाने की कोशिश 
इसकी एक वजह ये भी है प्रदेश की सत्ता संभाल रही समाजवादी पार्टी में प्रतिनिधित्व को लेकर झगड़ा चल रहा है। माना जाता है कि मुस्लिम वोटबैंक समाजवादी पार्टी के पक्ष में खड़े होते हैं। लेकिन जिस तरह से सपा में अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव के बीच विवाद गहराया हुआ है। पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं लग रहा है, ऐसे में मायावती को उम्मीद है कि मुस्लिम वोटर कहीं न कहीं बीएसपी पर अपना भरोसा जता सकते हैं। इसी के मद्देनजर पार्टी ने प्रदेश में दूसरी पार्टियों के मद्देनजर ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है।

मुस्लिम इलाकों में मुसलमान प्रत्याशी 
खास तौर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आने वाली 149 विधानसभा सीटों में से 50 सीटों पर बीएसपी ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। पार्टी की ओर से कुल 97 मुस्लिम उम्मीदवार प्रदेशभर में उतारे हैं इनमें आधी संख्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही इन उम्मीदवारों की है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां के मुजफ्फरनगर जिले की 6 विधानसभा सीटों में से तीन सीटों पर बीएसपी ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। ये संख्या 2012 के चुनावों से एक ज्यादा है। ये सीटें चरथावल, जहां से वर्तमान विधायक नूर सलीम राणा को उतारा गया है, वहीं मीरापुर से नवाजीश आलम खान को और बुढ़ाना से सैयदा बेगम को बीएसपी ने अपना उम्मीदवार बनाया है। बता दें कि इसी इलाके में 2013 में सांप्रदायिक दंगे हुए थे जिसमें करीब 66 लोगों की जान चली गई थी और हजारों लोग बेघर हो गए थे। सैयदा बेगम पूर्व बीएसपी विधायक कादिर राणा की पत्नी हैं। नूर सलिम राणा कादिर राणा के भाई हैं। शामली जिला भी इस दंगे से काफी प्रभावित हुआ था यहां पार्टी ने तीन सीटों में से दो में मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं।

मुस्लिम उम्मीदवारों को ज्यादा उतारने के पीछे पार्टी को उम्मीद यही है कि इन इलाकों में मुस्लिम वोटरों का झुकाव उनकी ओर होगा। बता दें कि बीएसपी का वोट शेयर 2009 में इस इलाके में 33 फीसदी था जो कि 2014 के आम चुनावों में गिरकर करीब 23 फीसदी ही रह गया था। इसके पीछे एक कारण दंगों के बाद हुआ ध्रुवीकरण भी था। इस दौरान बीजेपी ने यहां 59 फीसदी वोट हासिल किए थे। 

जातिवाद का कलंक धोने की कोशिश 
फिलहाल बीएसपी की ओर से हो रहे चुनाव प्रचार में यही बताने की कोशिश हो रही है कि जातिय संघर्ष की वजह बीजेपी और एसपी ही हैं। बीएसपी के प्रमुख मुस्लिम चेहरे नसीमुद्दीन सिद्दीकी चुनावी सभाओं में यही बता रहे हैं कि बीएसपी के शासनकाल में कोई भी दंगें नहीं हुए हैं। अगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाहर उम्मीदवारों की बात करें तो पूर्वोत्तर यूपी और मध्य यूपी में पार्टी ने मुस्लिम वोटरों को मौका दिया है। बुंदेलखंड इलाके की 19 सीटों में पार्टी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है। बता दें कि प्रदेश में 97 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे गए हैं जिनका आंकड़ा 24 फीसदी के करीब है।

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