शिवराज सरकार में हिम्मत है तो प्रमोशन में आरक्षण का फैसला करवाए

भोपाल। पदोन्नति में आरक्षण प्रकरण में दिनांक 24.1.2016 को मान्नीय सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई नियत है। कल दिनांक  20.1.2017 के समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों के अनुसार मप्र शासन द्वारा पुनः प्रकरण में बाधा उत्पन्न किये जाने की पहल की जा रही है। शासन द्वारा मान्नीय सर्वोच्च न्यायालय से यह अनुरोध किये जाने के संकेत मिले हैं कि पदोन्नति में आरक्षण के संदर्भ में प्रकरण के अंतिम निर्णय होने तक मध्यप्रदेश पदोन्नति नियम 2002 के अनुरूप ही पदोन्नतियॉं करने की स्वीकृति दी जावे। 

अब जबकि उक्त प्रकरण अंतिम सुनवाई हेतु नियत है, ऐसी किसी प्रकार की पहल अथवा अनुरोध का सपाक्स संगठन पूरी तरह विरोध करता है। संगठन अनुरोध करता है कि शासन उक्त प्रकरण में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न करने के बजाय प्रकरण के अंतिम निराकरण में सहयोग करे तथा माननीय न्यायालय के निर्णय के अनुसार कार्यवाही सुनिश्चित करें। शासन की उक्त गतिविधि से ऐसा स्पष्ट होता है कि शासन उक्त प्रकरण में अंतिम निर्णय किसी भी स्थिति में होने देना नहीं चाहता है।

यह सही है कि उक्त निर्णय के कारण पदोन्नतियॉं नहीं हो पा रही हैं, किन्तु इससे सर्वाधिक विपरीत प्रभाव सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को ही हो रहा है। विगत एक वर्ष की अवधि में हजारों कर्मचारी माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय के बावजूद पदोन्नति के लाभ से वंचित है। यदि शासन कर्मचारियों के हित के लिये इतना ही चिंतित है तो माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर के निर्णय अनुसार कार्यवाही करते हुये वरिष्ठता के आधार पर अधिकारियों/कर्मचारियों को पदोन्नत करने की कार्यवाही करें, ताकि पदोन्नति नियम-2002 के कारण उत्पन्न हुई विसंगतियों एवं एक वर्ग विशेष को दिये गये अनुचित लाभ की स्थिति को दूर कर वास्तविक हकदारों को न्याय प्राप्त हो सके।

शासन की उक्त पहल से ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकरण के निर्णय में अनावश्यक रूप से बार-बार बाधायें उत्पन्न की जा कर सपाक्स वर्ग के अधिकारियों/कर्मचारियों को आर्थिक रूप से कमजोर करने का षडयंत्र किया जा रहा है। शासन इस प्रकरण में बहुसंख्यक वर्ग के अधिकारियों/कर्मचारियों के साथ न सिर्फ अन्याय कर रहा है, बल्कि एक असंवैधानिक ठहराये गये नियम के अनावश्यक बचाव के लिये जनता की गाड़ी कमाई से एकत्रित ‘कर‘ का दुरूपयोग भी कर रहा है। सपाक्स संस्था इस प्रकार की किसी भी पहल का पूरी तरह विरोध करती है तथा म.प्र. शासन से अपील करती है कि प्रकरण के अंतिम निर्णय में सहयोग करे। ताकि मान्नीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में अनुसार संवैधानिक रूप से सभी को समानता से लाभ प्राप्त हो सके।
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