भोपाल। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की वाटरशेड परियोजनाओं में दस वर्षो से कार्यरत दस हजार वाटरशेड सचिवों तथा कर्मचारियों को हटाने के विरोध में भोपाल की राजधानी के चिनार पार्क में आज म.प्र. संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष रमेश राठौर की अध्यक्षता में बैठक आयोजित की गई। जिसमें निर्णय लिया गया है कि दस वर्षो से वाटरशेड सचिव और कर्मचारी कार्य कर रहे थे जिनका कार्य गांवों की अधोसरंचना का विकास करना, समूह बनाना, सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराना, किसानों को उन्नत कृषि यंत्रों की जानकारी देना था। जिसकी वजह से म.प्र. सरकार को चार बार कृषि कृमण पुरूस्कार भी प्राप्त हुआ। उसके बावजूद म.प्र. सरकार ने तीन हजार रूपये वेतन पाने वाले वाटर सचिवों और वाटरशेड मिशन में कार्य करने वाले टीम लीडर, टीम सदस्य, समन्वयकों की सेवाएं समाप्त कर दीं।
जिसकी वजह से हजारों सचिव और संविदा कर्मचारी और उनके परिवार सड़कों पर आ गये हैं। महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष रमेश राठौर ने बैठक की अध्यक्षता करते हुये कहा कि वर्तमान सरकार केवल उघोगपतियों और पूंजीपतियों की ही बात सुनती हैं। गरीब कर्मचारियों की सरकार कोई सुध नहीं ले रही है। म.प्र. सरकार और केन्द्रीय सरकार ने दो करोड़ लोगों को रोजगार देने की बात की थी लेकिन रोजगार देने की बजाए रोजगार में लगे हुये कर्मचारियों को बेरोजगार किया जा रहा है।
म.प्र. संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ के प्रदेष अध्यक्ष ने वाटरषेड संविदा सचिवों और संविदा कर्मचारियों की बहाली के लिए 1 फरवरी से आंदोलन करने का निर्णय लिया है। महासंघ ने आरोप लगाया कि सरकार की दोहरी नीति अपना रही है क्योंकि म.प्र. सरकार ने पंचायत सचिवों और शिक्षा ग्यांरटी शाला में कार्य करने वाले गुरूजियों को नियमित कर दिया और वाटरशेड मिशन में कार्य करने वाले सचिवों को हटा दिया जबकि वाटरशेड सचिवों और पंचायत सचिवों, गुरूजियों की भर्ती प्रक्रिया एक समान थी। इसलिए सरकार वाटरशेड मिशन की सचिवों को भी नियमित करे।