
राज्य शासन ने बीडीए को वर्ष 2006 में होशंगाबाद रोड स्थित आशिमा माल से कटारा हिल्स तक मास्टर प्लान की रोड के दोनों ओर कुल 815 एकड़ में हाउसिंग प्रोजेक्ट की मंजूरी दी थी। किसानों से आपसी करार या अधिग्रहण के जरिए जमीन हासिल करनी थी। इसमें से 379 एकड़ जमीन जायज तरीके स्कीम से बाहर की गई। इसी समय गड़बड़ी कर 264 एकड़ जमीन और छोड़ दी गई। यानी 172 एकड़ जमीन ही बची। घोटाले को रोकने के लिए सबसे पहले टाउन एंड कंट्री प्लानिंग एक्ट की धारा 50 (5) में गठित होने वाली समिति ने आपत्ति लगाई। इसी रिपोर्ट पर पूरा घोटाला उजागर हुआ। इसके चलते सरकार को दो साल पहले योजना से बाहर की गई 264 एकड़ जमीन वापस लेने का आदेश भी देना पड़ा। अब खुद सरकार ने ही एक्ट में संशोधन कर समिति को ही खत्म कर दिया। यह संशोधन 43 साल पहले से लागू माना जाना है।
इन बिल्डरों की जमीन घोटाले में
दिलीप डेवलपर्स, संजय बूलचंदानी, मनोहर असनानी, ओपी कृपलानी आदि की जमीनों को गलत तरीके से छोड़ा गया। करीब 50 एकड़ जमीन का टीएंडसीपी से नक्शा भी मंजूर नहीं थी, फिर भी स्कीम से जमीन बाहर निकाल दी गई।
घोटाला दबाने के लिए लिया कोर्ट का सहारा
सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में बिना जोनल प्लान के पूरे प्रदेश के विकास प्राधिकरणों की स्कीम अवैध करार दी गई थी। इससे बचने के लिए सरकार ने सितंबर में अध्यादेश लाकर कानून से जोनल प्लान ही खत्म कर दिया। अफसरों ने कारगुजारी करते हुए अन्य धाराओं में भी संशोधन कर दिए। इसमें किसानों से जबरिया जमीन लेने जैसा फैसला भी है।
यह ऐतराज
केंद्र के भूमि अधिग्रहण कानून के तहत जमीन का अधिग्रहण नहीं होना। यानी अफसर मनमाने तरीके अधिग्रहण के दाम तय करेंगे। सुनवाई की उचित व्यवस्था नहीं।
यदि किसी किसान को न्याय नहीं मिला तो वह कोर्ट भी नहीं जा सकता है।
कानून में संशोधन 43 साल पहले लागू करने से कई विसंगतियां होगी।
एक्ट में बदलाव की मंजूरी राष्ट्रपति से भी नहीं ली गई।
3 साल की समय सीमा खत्म यानी कभी भी जमीन अधिग्रहण हो सकता है।