बीच समंदर महीनों तक दर्जनों पुरुष अफसरों के बीच अकेले काम करती है यह भोपाली गर्ल

भोपाल। सुनेहा गनपाड़ें देश की पहली ऐसी महिला हैं, जो शिप पर चीफ ऑफिसर इन सेकंड कमांड की पोस्ट पर काम कर रही हैं। जहां उन्हें समुद्री जहाज में बीच समंदर लंबे वक्त तक मेल ऑफिसर्स के बीच रहना होता है। हांलाकि यह जॉब उन्होंने खुद मांगी थी। क्योंकि उन्हें चैलेंजिब जॉब करना पसंद है। उनकी हिम्मत और साहस को देखते हुए उनका सिलेक्शन भारत की 100 वुमन अचीवर्स में हो चुुका है और वे प्रेसिडेंड के हाथों सम्मानित की जा चुकी हैं।

भोपाल की रहने वाली सुनेहा गनपांडे बचपन से ही पिता और भाई को पुरुषों वाले काम करते देख उनके जैसा कुछ करना चाहती थीं। खेलकूद में भी उनके ज्यादातर दोस्त लड़के ही होते थे। कॉलेज में आईं तो अपने लिए कुछ चैलेंजिंग जॉब तलाशना शुरू कर दिया। उन्हें इसका मौका इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी होते-होते मिल गया। उन्होंने मर्चेंट नेवी के लिए अप्लाई किया और उनका सिलेक्शन हो गया। शिपिंग काॅर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया ने 800 ट्रेनीज के बीच सुनेहा को बैच कमांडर चुना।

बदले मर्चेंट नेवी के नियम
समस्या तब हुई जब पोस्टिंग शुरू हुई। अफसरों का साफ आॅर्डर था कि महिला अफसरों को पहले पैसेंजरशिप पर पोस्टिंग दी जाए। उनका तर्क था कि सी-शिप में बहुत खतरे और चुनौतियां होती हैं, जिन्हें झेलना महिलाओं के लिए मुश्किल होगा। सुनेहा यह मानने को तैयार नहीं हुईं। उन्होंने किसी भी पैसेंजरशिप पर ज्वाॅइन करने से इंकार कर दिया। पूरे बैच की पोस्टिंग रोक दी गई। आखिरकार उनकी ज़िद के आगे अफसर झुक गए और सुनेहा को पहली पोस्टिंग एक तेलवाहक जहाज पर दी गई।

दिया शिप से बाहर जाने का आदेश
उनकी पोस्टिंग से शिप के चीफ अफसर बेहद नाखुश थे। उन्होंने हेडक्वार्टर को लेटर लिखा कि एक महिला अफसर के कारण बाकी स्टाफ को मुश्किल होती है। उनके खिलाफ कई बार तरह-तरह के आरोप लगाए गए और पुरुषों के मुकाबले कम दक्ष बताकर शिप से बाहर जाने का आदेश तक दिया गया। हर कदम पर वे खुद को साबित करती रहीं। कई बार उन्हें खुद भी लगा कि उन्हें वापस आ जाना चाहिए, पर उन्होंने ये सोचकर शिप पर बने रहने का फैसला किया कि फिर कभी लड़कियों को इस काम में शामिल नहीं किया जाएगा। सुनेहा जिस जहाज पर थीं, उसमें दो से तीन लाख टन तक तेल का ट्रांसपोर्टेशन किया जाता था।

शिप पर वे अकेली महिला थीं
वे शिप को नेविगेट करती, टैंकर को लोड और अनलोड करतीं और डेक पर लगातार 12 से 18 घंटों तक पुरुषों के साथ बराबरी से काम करती। शिप पर वे अकेली महिला थीं, जहां न महिलाओं के लिए किसी प्रकार की इमरजेंसी फैसिलिटी थी, न ही कोई नियम-कायदे। सारे नियम केवल पुरुषों के मुताबिक बनाए गए थे। जहाज़ एक बार समंदर में उतरता तो लगातार एक से चार महीनों तक पानी में ही रहता था। घर और परिवार से किसी भी तरह का कॉन्टेक्ट केवल सैटेलाइट फोन से ही किया जा सकता था।
भोपाल समाचार से जुड़िए
कृपया गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें यहां क्लिक करें
टेलीग्राम चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें
व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए  यहां क्लिक करें
X-ट्विटर पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
समाचार भेजें editorbhopalsamachar@gmail.com
जिलों में ब्यूरो/संवाददाता के लिए व्हाट्सएप करें 91652 24289

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!