सेना और सरकार एक खास सवाल

Bhopal Samachar
राकेश दुबे@प्रतिदिन। सेना में काफी कुछ परंपरा से तय होता है। राजनीतिक हस्तक्षेप से कई बार मुश्किलें बढ़ सकती हैं। वरिष्ठ अधिकारियों में असंतोष उभर सकता है, जिसे किसी भी रूप में उचित नहीं माना जा सकता। नरेंद्र मोदी सरकार सेना का मनोबल बढ़ाने और उसके अधिकारियों के सेना प्रमुख के पद पर लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत की तैनाती को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है। एक तरफ सरकार सफाई दे रही है, तो दूसरी और विपक्ष आरोप लगा रहा है। कांग्रेस और वाम दलों ने दो वरिष्ठ अधिकारियों को नजरअंदाज कर लेफ्टिनेंट जनरल रावत को सेना प्रमुख बनाए जाने को सेना में गलत परंपरा की शुरुआत और सेनाधिकारियों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला फैसला बताया है। 

उन्होंने सवाल उठाया है कि किस आधार पर रावत से वरिष्ठ दो अधिकारियों की योग्यता को नजरअंदाज किया गया। रावत उनसे किस तरह अधिक योग्य हैं। सरकार का तर्क है कि रावत को पिछले करीब तीस सालों का अशांत क्षेत्रों में काम करने का अनुभव है। खासकर सीमा पार से होने वाली घुसपैठों और आतंकी गतिविधियों पर काबू पाने में उनका सराहनीय योगदान रहा है। इसलिए सीमा पर तनाव के मद्देनजर माना जा रहा है कि वे बेहतर सेनाध्यक्ष साबित होंगे।

सम्मान की रक्षा का दावा करती रही है। समान पद समान पेंशन योजना लागू कर उसने सेना के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का संकेत भी दिया था। ऐसे में उसके ताजा फैसले से अगर कुछ अधिकारियों के सम्मान को ठेस पहुंच सकती है, तो निस्संदेह उसकी मंशा पर सवालिया निशान लगते हैं। पिछली सरकार के समय इसी तरह वरिष्ठ अधिकारी को नजरअंदाज कर उनसे कनिष्ठ को नौसेना प्रमुख की जिम्मेदारी सौंप दी गई थी। फिर उनके कार्यकाल के दौरान पनडुब्बियों में आग लगने या फिर उनमें तकनीकी खराबी की वजह से नष्ट हो जाने की घटनाएं अधिक हुईं। तब कयास लगाए गए कि नौसेना प्रमुख की नियुक्ति में वरिष्ठ अधिकारी की अनदेखी से उपजा असंतोष इसकी वजह हो सकता है। 

अगर सचमुच सरकार का ताजा फैसला तर्कसंगत है, तो उसे इसे लेकर उठे विवाद को शांत करने के लिए आगे आना चाहिए। पहले ही सेना में राजनीतिक हस्तक्षेप और वरिष्ठ पदों पर तैनाती को लेकर सैनिकों में असंतोष देखा जाता है, उसे और गहरा न होने देना सरकार की जिम्मेदारी है। भारतीय थल सेना दुनिया की सबसे विशाल जमीनी सेना है। अनेक दुर्गम इलाकों में इसकी जिम्मेदारियां दूसरी सेनाओं से कहीं महत्त्वपूर्ण मानी जाती हैं। ऐसे में अगर उसके मुखिया के पद पर राजनीतिक पक्षपात दिखाई देता है, तो पूरी सेना के मनोबल पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका स्वाभाविक है। 
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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