देहरादून। बीमा कंपनी की ओर से उपभोक्ता की पॉलिसी कराने में बीमा की समय अवधि को लेकर गुमराह कर दिया। पांच वर्ष की पॉलिसी को दस वर्ष की बतायी गई। मामले में जिला उपभोक्ता फोरम ने पॉलिसी के लिए दिए प्रीमियम व एफडीआर उपभोक्ता को वापस करने के आदेश बीमा कंपनी को दिए हैं।
शिव नगर डिफेंस कालोनी निवासी विक्रम सिंह रावत ने मई 2012 को जीआरआरओपीएनबी मिटलाईफ इंश्योरेंस कंपनी के एजेंट व पीएबी शाखा के मैनेजर से संपर्क किया। जहां पर रावत को बताया कि एक बीमा पॉलिसी ऐसी है कि पीएनबी में पांच लाख की एफडी करनी होगी, ताकि पांच वर्ष तक पॉलिसी का भुगतान होता रहे। पॉलिसी पांच वर्ष के लिए वैध है। जिसके बाद रावत ने पीएनबी में चार लाख की एफडी व एक लाख का चैक पॉलिसी प्रीमियम के तौर पर एजेंट को दे दिया गया।
मई 2013 को कंपनी के दूसरे एजेंट कुलदीप नेगी प्रीमियम लेने रावत के घर पर आए। दूसरे प्रीमियम के तौर पर एक लाख रूपए दे दिए। बाद में कुलदीप ने बताया कि यह पॉलिसी दस साल की है। इस पर रावत ने कहा कि उनसे कहा था कि पॉलिसी पांच वर्ष की है। फिर अगस्त 2013 में रावत ने पॉलिसी समाप्त कर प्रीमियम की धनराशि वापस करने के लिए एक शिकायती पत्र बीमा कंपनी को दिया। कंपनी ने जवाब में कहा कि शिकायत पॉलिसी होने के 15 दिन में करनी चाहिए थी।
फिर जाकर मामला फोरम में गया। फोरम अध्यक्ष बलवीर प्रसाद व सदस्य अलका नेगी ने बहस सुनी। बीमा कंपनी ने कहा कि प्रकरण कालबाधित है। पॉलिसी दस साल की थी। शिकायत 15 दिन में करनी चाहिए थी। रावत ने पॉलिसी के साक्ष्य व शपथ पत्र दिया। साक्ष्य का खंडन कंपनी नहीं कर पायी। फोरम ने आदेश दिया कि बीमा कंपनी प्रीमियम के तौर पर दिए गए दो लाख रूपए व एफडीआर उपभोक्ता को वापस करे। साथ ही क्षतिपूर्ति में 20 हजार व वाद व्यय के तौर पर 10 हजार अदा करे।