नई दिल्ली। विश्व के मीट कारोबार में इटली के बाद भारत का दूसरा नंबर आता है। भारत करीब आठ से नौ हजार करोड़ रुपये का मीट एक्सपोर्ट करता है लेकिन नोटबंदी के चलते इस कारोबार को लकवा मार रहा है। नोटबंदी से पहले जहां एक स्लाटर हाउस में पांच से छह हजार पशुओं का कटान होता था, वहीं अब मुश्किल से सौ से सवा सौ पशु रोज कट रहे हैं। दो हजार की लेबर में से दो-ढाई सौ लेबर ही बची है। एक लेबर को 275 से 300 रुपये रोज चाहिए होते हैं। वहीं पशु खरीदने के लिए भी हाट में नगद रुपयों की जरूरत होती है जो अब व्यपारियों के पास है नहीं। दूसरे देशों को मीट बेचने वाली देश में करीब 105 यूनिट हैं। एक यूनिट में एवरेज पांच से छह हजार पशुओं का कटान होता है। इसमे बकरा, भैंस, भेड़ आदि शामिल हैं।
छोटे-छोटे व्यापारी हाट में किसानों से पशु खरीदकर एक्सपोर्ट यूनिट में सप्लाई करते हैं। जानकारों की मानें तो हाट में सारा लेन-देन कैश होता है। उधार, चेक और कार्ड सहित ऑनलाइन के किसी भी तरीके की भुगतान करने के लिए कोई गुंजाइश नहीं होती है। भैंस की बात करें तो हाट में एक भैंस का सौदा 15 से 20 हजार रुपये तक का होता है। एक बकरे और भेड़ की बात करें तो इनका सौदा पांच हजार रुपये से लेकर 12 हजार रुपये तक का होता है।
एक यूनिट में भैंस का काम भी होता है तो बकरे और भेड़ का भी होता है। इस लिहाज से एक यूनिट को पशु खरीदने के लिए पांच से छह करोड़ रुपये की जरूरत होती है। वहीं दो हजार लेबर के बीच कम से कम पांच लाख रुपये रोज दिहाड़ी बांटने के लिए चाहिए। महीने का वेतन पाने वाले कम से कम चार सौ से पांच के स्टाफ का वेतन अलग है। दूसरे छोटे-छोटे और खर्चों का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
यह तो रही एक्सपोर्ट यूनिट की बात। अगर जरा दूसरे स्लाटर हाउस पर निगाह डालें तो स्थानीय और राज्य स्तरीय पंजीकरण करीब चार हजार है। यहां से लोकल सप्लाई होती है। अब जरा गैरपंजीकृत स्लाटर हाउस की संख्या देखें तो देशभर में यह 25 हजार के करीब हैं। ये वो स्लाटर हाउस हैं जहां स्थानीय दुकानों पर सप्लाई के लिए पशुओं का कटान होता है। लेकिन नोटबंदी के बाद से सब के सब हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं।
मजदूर बेरोजगार
जानकारों का कहना है कि एक यूनिट में डेढ़ से दो हजार तक दिहाड़ी लेबर होती है। इस लेबर को रोज भुगतान करना होता है। लेकिन अब यह लेबर बेकार बैठी हुई है। धीरे-धीरे यूनिट मालिकों ने लेबर को उसके घर वापस भेजना शुरू कर दिया है। कहा जा रहा है कि जब काम शुरू होगा तो बुला लेंगे।
अल हम्द एग्रो फूड, अलीगढ़़ के मुहम्मद तौसीफ बताते हैं कि कारोबार के कम या ज्यादा होने की क्या बात करें, हमारी यूनिट में तो ताला ही लग गया है। एक भी पशु नहीं कट रहा है। नुकसान जो हो रहा है वो तो है ही लेकिन हमारी एक्सपोर्ट वाली पार्टियां खराब हो रही हैं। लेबर को बैठाकर खिलाना पड़ रहा है। अब अगर दो-तीन दिन में कोई रास्ता नहीं दिखाई दिया तो लेबर को उसके घर वापस भेज देंगे।