OROP: कुछ समझदारी की बात भी हो

राकेश दुबे@प्रतिदिन। वर्षो से अटकी पड़ी ओआरओपी योजना को लागू करके राजनीतिक बढ़त बनाने वाली मोदी सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने के लिए कांग्रेस, आप और अन्य सियासी दलों को पूर्व सैनिक की खुदकुशी का मुद्दा हाथ लग गया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी और दिल्ली के मुख्यमंत्री सुरक्षा की दृष्टि से हिरासत में लिये गए। मृत सैनिक के परिजनों से मिलने के लिए हंगामा करते रहे। किसी पूर्व सैनिक की आत्महत्या पर की जाने वाली राजनीति की यह शायद पहली घटना है।

सीमा पर शहीद होने वाले सैनिकों के एक लिए दीया जलाने की याद इन नेताओं को कभी नहीं आती। ओआरओपी को लागू करने का मुद्दा पिछले 43 सालों से अटका पड़ा था. इसकी जटिलताओं को देखते हुए पिछली सभी सरकारों ने इसके प्रति टालू रवैया अपनाये रही। अब जब इसे लागू कर दिया तो सभी सियासी दलों को अपच हो रहा है। वे सरकार की बात से ज्यादा उसे तरजीह दे रहे है, जिसे हवा बनाना  कहा जाता है।

जब ऐसे संवेदनशील और जटिल ओआरओपी योजना को लागू किया गया तो अवश्य कुछ विसंगतियां भी रह गई होंगी जिनका निराकरण किया जा सकता है। इस और कोई प्रयास करने को तैयार नहीं है। इसके चलते ही कुछ पूर्व सैनिक असंतुष्ट रह गए। उनकी पहली शिकायत सिविलियन अफसरों के मुकाबले सेना के अफसरों की डाउनग्रेडिंग का मामला था। फिर पेंशन के पुनर्निर्धारण को लेकर भी शिकायतें थीं। सरकार ने इसकी विसंगतियों की शिकायतों पर सुनवाई के लिए पटना उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायमूर्ति एल.नरसिंह रेड्डी की अध्यक्षता में एक न्यायिक समिति गठित की थी। इसने पिछले 26 अक्टूबर को ही रक्षा मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। सरकार जल्द से जल्द इन विसंगतियों को दूरकरने का संकल्प ले और पूर्व सैनिकों को धैर्य के साथ सरकार के अंतिम फैसले का इंतजार करना चाहिए। 

पूर्व सैनिक राम किशन ग्रेवाल को अतिवादी कदम से पूरे देश को दुख पहुंचा है। फिर भी यह कहा जा सकता है कि उन्हें अपनी न्याय की लड़ाई को अंतिम मुकाम तक पहुंचाने के लिए संघर्ष जारी रखना चाहिए था।उनके परिवारजनों को भी चाहिए कि वह रामकिशन ग्रेवाल की शहादत को राजनीतिक मुद्दा न बनने दे। सेना और सैनिक पर विपक्ष भी राजनीति से बाज आए, यही समझदारी की बात होगी।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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