
इस बार की रैंकिंग में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सबसे ऊपर हैं। नंबर एक के लिए उनमें टाई हो गया है, जबकि पिछले साल तक नंबर एक पर रहने वाला गुजरात इस बार नंबर तीन पर पहुंच गया है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ने नए उद्योगों के लिए जो व्यवस्था की है, वे महत्वपूर्ण तो हैं ही, साथ ही वे ऐसी हैं कि दूसरे राज्य उनसे सबक ले सकते हैं। मसलन, तेलंगाना में नया उद्योग लगाने की तमाम तरह की इजाजत लेने के लिए किसी उद्योगपति को सरकारी अधिकारियों से मिलने की जरूरत नहीं है, ये सारा काम ऑनलाइन अपने आप हो जाता है। मध्यप्रदेश में उद्योगपतियों को अब भी मंत्रियों और अधिकारियों के चक्कर काटने पड़ते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि बिहार से अलग हुआ झारखंड और उत्तर प्रदेश से अलग हुआ उत्तराखंड पहले दस राज्यों में स्थान बनाने में कामयाब रहे। उत्तर प्रदेश का एक और पड़ोसी सूबा हरियाणा भी इन दस में शामिल है। उत्तराखंड तो पिछले साल 23वें स्थान पर था और इस साल वह नौवें स्थान पर पहुंच गया, जबकि हरियाणा 14वें स्थान से छलांग मारते हुए छठे स्थान पर जा पहुंचा। वैसे यह मामला ऐतिहासिक कारणों का उतना नहीं है, जितना कि मौजूदा समय की जरूरतों के हिसाब से आर्थिक सुधार लागू करने का है। आर्थिक सुधारों को लागू करने और उद्योगों की राह से बाधाएं दूर करने के लिए जिस नई सोच और प्रतिबद्धता की जरूरत होती है, उसमें अतीत कोई भूमिका नहीं निभाता है। तेलंगाना, हरियाणा और उत्तराखंड जैसे राज्यों ने यह दिखाया है कि ईमानदार कोशिशों की बदौलत राज्य की छवि बदली जा सकती है। यहाँ अर्थात मध्य प्रदेश में भी कुछ कीजिये।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए