कहानी: एक लड़की आहत सी by योगेश दीक्षित

मैं अस्पताल में थी। पापा मेरे सिरहाने बैठे सिर पर हाथ फेर रहे थे। मेरा पूरा शरीर जल रहा था। वस्त्र बदन से चिपक से गये थे उन्हें हटाते ही दर्द बढ़ जाता, गहरी निःश्वास निकल जाती। मॉं की याद आ जाती जब दस वर्ष की थी मॉं का निधन हो गया था, मॉं होती तो यह देख भी न पाती.... सीने से चिपकाये रहती.......कितना सुकून नहीं मिलता था मॉं के आंचल से.......दर्द तो गायब ही हो जाता था। पापा ने मॉं की कमी का अहसास नहीं होने दिया लेकिन मॉं तो मॉं ही होती है। 
यह सोचते ही मेरी ऑंखें डबडबाई। पापा ने तुरंत आंसू पोछते हुए कहा, क्या हुआ स्मिता दर्द हो रहा है डॉक्टर को बुलाऊ.....?
‘‘नहीं ठीक हॅूं।’’

पापा नहीं माने। डॉक्टर को उन्होंने बुला लिया डॉक्टर देखकर चला गया। मैं पुनः यादों मेें खो गयी। सुधीर से ऐसी आशा नहीं थी क्यों किया उसने ऐसा मेरे साथ। प्रेम न करने की इतनी बड़ी सजा। कैसे प्रेम करती उससे मेरा रिश्ता तो अमित से जुड़ गया था। एक माह बाद शादी होने वाली थी। अमित कितना होनहार नहीं है। टाप किया है उसने यूनिवर्सिटी में। बड़े खानदान का वारिश है। सुधीर तुम तो उसके सामने पसंगे भी नहीं। मानती हॅूं कि तुमने मेरी जान बचायी। तालाब से पैर फिसलने पर तुम मुझे किनारे ले आये। तुरंत डॉक्टर के पास ले गये। मेरा ध्यान रखा। कॉलेज में आयी मुसीबतों पर भी तुम मेरे साथ थे। लेकिन इसके मायने यह नहीं कि मुझे तुमसे प्यार है। 

प्यार को तुम नहीं समझोंगे सुधीर। प्यार एक तरफा नहीं होता। ये दिल से निकला ऐसा गुबार है जो नसों में दौड़ता आग पैदा करता है। अनुभूति होती है। सुधीर मैं जानती हॅूं बरसों तुम मेरे करीब रहे। मेरे परिवार के एक सदस्य बनकर रहे हो। पापा ने जो भी कार्य तुमको बताया तुमने किया। तुम एक किरायेदार बनकर मेरे घर आये थे। लेकिन ऐसा कभी नहीं लगा तुम किरायेदार हो। तुमने कहा था कि मैं एक छोटे गांव का हॅूं शहर की हाई प्रोफाइल लाईफ से दूर हॅूं। मेरे वास्ता कभी हाई-फाई लोगों से नहीं हुआ थोड़े से पैसे में अपनी गुजर बसर करता हॅूं। यह बात मुझे तुम्हारी अच्छी लगी थी। 

महानगर में रहकर भी तुम अपने गांव की संस्कृति को नहीं भूले थे। मुझे पता था तुम शेर शायरी लिखते थे। तुम्हारी कविताएॅं भी मैंने पत्रिकाओं में पढ़ी थी। जब भी मैं तुम्हारी कविता की प्रशंसा करती तुम आत्म-विभोर हो जाते। तुम्हारे दिल में क्या चल रहा था मैं समझ नहीं पायी। मैंने तुम्हें मित्र ही समझा, एक सच्चा साथी। 

एकाएक मेरी तन्द्रा टूटी। पापा मुझसे कुछ कह रहे थे- बेटा क्या सोच रही हो? चिन्ता न करों........ सब ठीक हो जायेगा। 
‘‘पापा मेरे हाथ तो........।’’
ठीक हो जायेंगे.........यहॉं इलाज नहीं हुआ तो मै तुम्हें अमेरिका ले जाऊॅंगा। चिन्ता न कर..... तेरा पापा अभी जिन्दा है। 
‘‘पापा’’ मेरे आंसू आ गये। 
तभी डॉक्टर आ गया, ‘‘स्मिता दर्द कम हुआ?’’ 
‘‘नहीं अभी भी बदन जल रहा है।’’
‘‘अभी एक इंजेक्शन लगाता हॅूं सब ठीक हो जायेगा।’’

मेरी ऑंखें डॉक्टर पर टिक गयीं। कितनी राहत मिलती है उनके आने से। लगता है जैसे कोई फरिश्ता आ गया हो। डॉक्टर का स्नेहिल चेहरा और मीठी मुस्कान दर्द को दूर कर देती है। लगता है काश वे मेरे पास खड़े रहे। उनके जाने के बाद पुनः अतीत कचोट गया। सुधीर ने तो मुझे खत्म ही कर दिया था। यदि राहगीर उसे न पकड़ते तो पूरी शीशी उड़ेल देता उसका ऐसा बर्वर भयानक रूप पहले कभी नहीं देखा था। ऑंखों से शोला बरस रहा था। हाथ क्रोध से फड़क रहे थे। यह अचानक उसे क्या हो गया था। मैंने इतना ही कहा था अमित मेरा जीवन साथी है। तुम मित्र हो मित्र ही रहोगे। यह बात उसे इतनी चुभेगी मैं सोच नहीं सकती थी वह शायद पहले से ही तेजाब की बाटली लेकर आया था। मेरा उत्तर सुनने की उसने आखिरी कोशिश की थी, कहा, स्मिता तुम मेरी नहीं हुई तो अब किसी की नहीं हो पाओंगी। मैं तुम्हें दूसरे के साथ देख नहीं सकता। ‘‘क्या हो गया सुधीर तुमको......तुम तो मेरे बहुत अच्छे दोस्त हो।’’ 
भाड़ में जाये ये दोस्ती मैं तुमको अपनी बाईफ बनाना चाहता हॅूं। 
‘क्या कहा.........?’
‘हॉं.....वाइफ.........।’ 

यह सुनते ही मैंने उसके गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया। वह तिलमिला उठा और उसने जैकेट से बाटली निकाली और मेेरे ऊपर उड़ेल दी। मैंने तुरंत चेहरा घुमा लिया। चेहरा बच गया लेकिन पूरा दाहना अंग आग से झुलस गया। मुझे फिर होश भी नहीं रहा..... कैसे कब अस्पताल पहुॅंची... ऑंख खुली देखा तो बदन पर पट्टियॉं बंधी थी। सामने अमित रूआंसा सा बैठा था। तड़प मैं रही भी आंसू उसके झर रहे थे। फिर उसके बोल मेेरे कानों में पड़े। मैं उसे जिन्दा नहीं छोड़ूगा। 
‘‘जाने दो अमित उसे जो करना था कर लिया। कानून उसे सजा देगा।’’
‘‘ऐसे कैसे जाने दॅूं..... मैं छोड़ूगा नहीं उसे। 
‘‘छोड़ों अमित पुलिस तो उसे ढूढ़ ही लेगी। तुम क्यों उतावले हो रहे हो?’’
‘‘अरे उसने तुमको मारने में कोई कसर नहीं छोड़ी मैं कैसे चुप रह सकता हॅूं। उसके गांव का मुझे पता दो। मैं उसे ढूढ़ निकालूंगा।’’ 

अमित अपनी बात पर अड़ा रहा। मुझे सुधीर का पता देना पड़ा। लेकिन मुझे भय था कि सुधीर कहीं अमित पर हमला न करे जो मुझ पर तेजाब फंेक सकता है वह कुछ भी कर सकता है। मैं अंदर ही अंदर डर रही थी। 

मैं जानती थी कि सुधीर गांव नहीं गया होगा यही कहीं छिपा होगा वह पूरी कोशिश मुझे मारने की करेगा। उसके स्वभाव से मैं परिचित थी कि वह जो ठान लेता है उसे पूरा करके ही रहता है। जिन्दगी ने मुझे किस मोड़ पर खड़ा कर दिया। मुझे अपने सपने पेड़ के पत्ते की तरह उड़ते दिखाई दिये। 

इस कुरूपता पर अब कौन मोहित होगा। तन के बाहर आग लगी अंदर भी आग जल रही थी। चारों ओर अंधेरा नजर आ रहा था। मैं अपने को अमित के लायक नहीं समझ रही थी कहां अमित इतना सुन्दर गोरा चट्टा और कहॉं मैं जली भुनी। मैंने उससे कह दिया, अमित मैैें तुम्हारे लायक नहीं ये रिश्ता यही खत्म समझो।
क्या कह रही हो स्मिता ऐसा नहीं हो सकता। 
‘‘तुम नहीं जानते अमित। सुधीर तुम्हें जीने नहीं देगा।’’
‘‘तुम क्यों डर रही हो। मैं कमजोर नहीं पता तो चले कहॉं है। उसे थाने नहीं पहुॅंचाया तो मेरा नाम अमित नहीं।’’ 
‘‘वह थाने से बाहर भी आ सकता है फिर क्या करोगे।’’ 
‘‘तुमने मुझे भीरू समझ रखा है। मैं हार नहीं मान सकता। जीवनभर लड़ सकता हॅूं, तुमसे वादा किया है तो निभाऊॅंगा। भले मेरी जान चली जाये लेकिन तुमसे जुदा नहीं हो सकता।’’
मैं अमित का मुख देखती रह गयी। यही सुनना चाहती थी। मुझे ऐसे किसी कमजोर आदमी की जरूरत नहीं थी। अमित की दृढ़ता ने मुझे भरोसा दिया कि वह मेरा सदैव ख्याल रखेगा। 

योगेश दीक्षित 
सी-53 काकड़ा अभिनव
होम्स अयोध्या बायपास
भोपाल-41 मो. 9406534199
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