
2014 में प्रकाशित ‘ब्रोकन प्रोमिसिस’ (टूटे हुए वादे) नामक एक देशव्यापी अध्ययन में पाया गया की सच्चर कमिटी की सिफारिशों के 6 वर्ष पश्चात भी गरीब मुसलमानों की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया था। ना ही कोई स्कूल बने, ना ही कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, ना ही आंगनबाड़ी खोली गई, ना ही रोजगार के जरिये उपलब्ध हुए, ना ही कम लागत पर व्यापार के लिए ऋण राशि की सुविधा मुहैय्या हुई।
चंद रुढ़िबद्ध एवं पुरुष-प्रधान धार्मिंक गुटों या व्यक्तियों के तुष्टिकरण से मुसलमानों का फायदा नहीं हो सकता। ये बात आज आम मुसलमान नागरिक समझ रहा है। यदि भारत सरकार और भारतीय जनता पार्टी मुसलमानों के लये कुछ करना चाहती है तो यह समझना होगा कि वे प्राथमिक एवं उच्च शिक्षा के पर्याय चाहते है। वे रोजगार के अवसर चाहते है। इसके साथ-साथ मुस्लिम लड़कियां एवं महिलाएं कानूनी तौर पर कुरानी अधिकार चाहतीं हैं। सरकार एवं जिनका तुष्टिकरण किया गया, वैसे मुसलमान नेता दोनों ही ने असली बातों पर गौर करना जरूरी नहीं समझते।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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