
झारिया परिवार के डब्बलसिंह इस परंपरा के साक्षी हैं। अब मुहर्रम में डब्बल सिंह को सवारी आती है और मुहर्रम में उनके घर संकटों से मुक्ति पाने आस्थावानों का हुजूम लगता है। गांव में एक भी मुस्लिम परिवार न होने के बाबजूद सारा गांव मुहर्रम मनाता है। तो वहीँ रामलीला से रामायण के संस्कारों को पीढ़ियों में गढ़ने का सिलसिला वाकई गंगा जमनी तहजीब का बढ़िया उदहारण है।
सिमरिया के ग्रामीण देशवासियों को एक जुटता का सन्देश दे रहे हैं। यही हिन्दू परिवार यहां मुहर्रम में ताजिया भी बनाते हैं और खुदा की बंदगी में अपना सर्वस्व देते हैं। 70 साल से ज्यादा के हो चुके चतुर्भुज और मुलायम बताते हैं कि उन्होंने जब से होश संभाला तब से वे इस गांव की इन सामजिक समरसता की परंपराओं में रचे बसे हैं। वे बताते हैं कि उनके लिए ये बेहद ही गर्व की बात है कि वे गोटेगांव तहसील के इस सिमरिया गांव में जन्मे हैं।