
इस मामले में केंद्र के सारे दल साथ हैं, जम्मू-कश्मीर में भी विपक्षी दल राजनीतिक पहल के जरिए अमन का रास्ता तलाशने के हिमायती हैं। ऐसे में केंद्र सरकार अगर कश्मीर को लेकर कोई व्यावहारिक नीति बनाने और लगातार घाटी के लोगों का भरोसा जीतने का प्रयास करती है, तो पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेरना मुश्किल नहीं। केंद्र ने हुर्रियत नेताओं को सरकार की तरफ से मिलने वाली मदद और उनकी आमदनी वगैरह पर नजर रखने का विचार बनाया है। यह उन पर नकेल कसने का एक उपाय हो सकता है, पर इस मामले में हर कदम बहुत सावधानी से उठाने की जरूरत है। अलगाववादियों के खिलाफ एकदम से कोई कड़ा उठाना पाकिस्तान को लाभ पहुंचा सकता है। छिपी बात नहीं है कि ये अलगाववादी नेता पाकिस्तान की शह पर घाटी में अस्थिरता पैदा करने का प्रयास करते हैं।
जब भी भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद का मसला उठा कर पाकिस्तान को घेरने की कोशिश करता है, उसकी बौखलाहट बढ़ जाती है। नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन और भारतीय उच्चायुक्त गौतम बंबावले का कार्यक्रम रद्द करना पाक अधिकारियों की इसी बौखलाहट का नतीजा है। हकीकत यह है कि घाटी के आम लोग खून-खराबे के बजाय बातचीत के जरिए हल तलाशने के हिमायती हैं। ऐसे में हुर्रियत नेताओं के प्रति नकारात्मक रुख बना है। पाकिस्तान को इसकी भी कसक है। कश्मीर एक ऐसा मसला है, जिसे पाकिस्तान हर वक्त भुनाना चाहता है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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