क्यों एक मच्छर के आगे घुटने टेकने पर विवश है भारत

डाँ नीलम महेंद्र। मध्यप्रदेश का एक शहर ग्वालियर, स्थान जे ए अस्पताल, एक गर्भवती महिला ज्योति 90%  जली हुई हालत में रात 12 बजे अस्पताल में लाईं गईं, उनके साथ उनकी माँ और भाई भी जली हुई हालत में थे ।ज्योति और उसकी माँ को बर्न यूनिट में भर्ती कर लिया गया लेकिन उसके भाई सुनील को लगभग दो घंटे तक बाहर ही बैठा कर रखा। 

उसके बाद जब सुनील का इलाज शुरू किया गया  तब तक काफी देर हो चुकी थी और उन्होंने दम तोड़ दिया। जब घरवालों ने इस घटना के लिए समय पर इलाज न करने का आरोप डाक्टरों पर लगाया तो यह ' धरती के भगवान ' नाराज हो गए और 90% जली हुई गर्भवती ज्योति को बर्न यूनिट से बाहर निकाल दिया और वह इस स्थिति में करीब 5 घंटे खुले मैदान में पड़ रही। जब एक स्थानीय नेता बीच में आए तो इनका इलाज शुरू हुआ। इससे पहले डाक्टरों का कहना था  कि  ' तू ज्यादा जल गई है .....जिंदा नहीं बचेगी .....तेरा बच्चा भी पेट में मर गया है..... ' ( सौजन्य दैनिक भास्कर)

बात अनैतिक एवं अमानवीय आचरण तक सीमित नहीं है। बात यह है कि आज मानवीय संवेदनाओं का किस हद तक ह्रास हो चुका है। जिस डॉक्टर को मरीज की आखिरी सांस तक उसकी जीवन की जंग जीतने में मरीज का साथ देना चाहिए वही उसे मरने के लिए छोड़ देता है। उसकी अन्तरात्मा उसे धिक्कारती नहीं है, किसी कार्यवाही का उसे डर नहीं है। एक इंसान की जान की कोई कीमत नहीं है ? क्यों आज़ादी के 70 वर्षों बाद भी आज भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का एक मजबूत ढांचा तैयार नहीं हो पाया ? आम आदमी आज तक मलेरिया और चिकनगुनिया जैसे रोगों से मर रहा है और वो भी देश की राजधानी में। जब श्रीलंका और मालदीव जैसे देशों ने इन पर विजय प्राप्त कर ली है तो भारत क्यों आज तक एक मच्छर के आगे घुटने टेकने पर विवश है ? 

अगर प्रति हजार लोगों पर अस्पतालों में बेड की उपलब्धता की बात करें तो ब्राजील जैसे विकासशील देश में यह आंकड़ा 2.3 है  , श्रीलंका में 3.6 है  ,चीन में 3.8 है जबकि भारत में यह 0.7 है। सबसे अधिक त्रासदी यह है कि ग्रामीण आबादी को बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं के लिए न्यूनतम 8 किमी की यात्रा करनी पड़ती है।
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