आरएसएस की सीनाजोरी का शिकार हो जाएंगे बालाघाट एसपी

भोपाल। अब तक 3 आईपीएस अफसर राष्ट्रीय स्वयं सेवक से विवाद के कारण अपने पदों से बेवक्त हटाए जा चुके हैं। अब मामला बालाघाट का है। यहां ना केवल एसपी असित यादव को हटाने का दवाब बनाया जा रहा है बल्कि एडिशनल एसपी रेंक के अधिकारी के खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला भी दर्ज कराया जा चुका है। इस मामले ने पूरे पुलिस विभाग को आंदोलित कर दिया है। क्योंकि मामला उसके ठीक उलट है, जैसा कि प्रस्तुत किया गया। अब सवाल यह है कि जब सारी हकीकत सामने आ गई है, तब भी क्या आरएसएस की सीनाजोरी का शिकार हो जाएंगे बालाघाट एसपी। 

आईपीएस टी अमोग्ला प्रदेश छोड़कर चली गईं
नीमच में संघ और तत्कालीन एसपी टी अमोग्ला अय्यर के बीच खींचतान हुई थी। यहां पर कुछ लोग एक धर्म स्थल के आसपास एकत्रित हो गए थे। इन लोगों को रोकने के लिए महिला आईपीएस अफसर अमोग्ला अय्यर ने खुद मोर्चा संभाला। इसके बाद उनका तबादला कर दिया। हालांकि बाद में उन्हें निर्वाचन आयोग ने भोपाल दक्षिण का एसपी बनाया, लेकिन कुछ महीने बाद सरकार ने उन्हें यहां से हटा दिया। अब वे प्रतिनियुक्ति पर चली गई है।

आईपीएस आरआरएस परिहार आज तक लूप लाइन में
आगर-मालवा जिले में भी संघ की नाराजगी के चलते यहां के एसपी को आज तक लूप लाइन में रहना पड़ रहा है। यहां पर दो पक्ष आमने-सामने आ गए थे। इस दौरान जिले में तनाव के हालात बन गए थे। तनाव को देखते हुए तत्कालीन एसपी आरआरएस परिहार खुद थाने पहुंच गए और मोर्चा संभाला। उन्होंने इस दौरान दोनों पक्षों से कई लोगों को गिरफ्तार किया। इससे संघ पदाधिकारी नाराज हो गए। करीब दो साल से वे लूप लाइन में है। तत्कालीन एएसपी महावीर मुजालदे को भी हटाया गया था।

दिन काट रहे हैं आईपीएस दीपक वर्मा
इस वर्ष जुलाई में रायसेन जिले के दीवानगंज के सेमरा गांव में दो समुदाए आमने-समाने आ गए थे। दोनों समुदाओं को खदेड़ने के लिए पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा। इससे संघ पदाधिकारी नाराज हो गए। नतीजे में यहां के एसपी दीपक वर्मा का तबादला कर दिया गया। वर्मा को भी जिला न देकर उन्हें 25वीं बटालियन में पदस्थ किया गया है। वहीं एसडीओपी मंजीत चावला को भी पुलिस मुख्यालय में पदस्थ किया गया है।

इस बार बात पुरानी नहीं है
लेकिन बालाघाट मामले में बात पुरानी वाली नहीं है। इस मामले को जबर्दस्त ऊंचाई पर ला दिया गया है और मामले का दूसरा पहलू भी सामने आ गया है। यदि आईपीएस असित यादव पर कार्रवाई की मार पड़ती है तो यह शायद मप्र में संघ की प्रतिष्ठा के लिए उचित नहीं होगा। वह इसलिए भी क्योंकि असित यादव ने मामले में सूझबूझ का परिचय दिया है। प्रचारक ने वाट्सएप पर भड़काऊ पोस्ट डाली। गिरफ्तारी के बावजूद संघ प्रचारक थाने से भागा और उसे काबू करने के दौरान वो चोटिल हुआ। सुबह मामले को पुलिस के खिलाफ मोड़ दिया गया। इससे पूरा पुलिस विभाग आंदोलित है। वो इसलिए भी क्योंकि ना तो आईपीएस असित यादव की छवि तानाशाह अधिकारी की है और ना ही टीआई जियाउल हक की। एडिशनल एसपी राजेश शर्मा को एक समझदार और संयम वाला अधिकारी माना जाता है। इस बार संघ की विचारधारा में यकीन रखने वाले पुलिस अधिकारी भी संघ के हंगामे से सहमत नहीं हैं। ऐसे में एक नई कार्रवाई फायदा कम, नुक्सान ज्यादा पहुंचा सकती है। 
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