बढती गाड़ियाँ, घटता जीवन

राकेश दुबे@प्रतिदिन। एक अंतरराष्ट्रीय शोध रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर प्रदूषण स्तर को काबू में नहीं किया गया तो साल 2025 तक दिल्ली में हर साल करीब 32,000 लोग जहरीली हवा से असामयिक मौत के मुंह में जाएंगे। ‘नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित ताजा शोध के मुताबिक दुनियाभर में 33 लाख लोग हर साल वायु प्रदूषण के शिकार होते हैं। यही नहीं सड़कों में बेवहज घंटों फंसे लोग मानसिक रूप से भी बीमार हो रहे हैं व उसकी परिणति के रूप में आए रोज सड़कों पर ‘रोड रेज’ के तौर पर बहता खून दिखता है। 

यह हाल केवल देश की राजधानी के ही नहीं है, सभी छह महानगर, सभी प्रदेशों की राजधानियों के साथ-साथ तीन लाख आबादी वाले 600 से ज्यादा शहरों-कस्बों के हैं। दुखद है कि दिल्ली और कोलकता में हर पांचवा आदमी मानसिक रूप से अस्वस्थ है। यह तो सभी स्वीकार करते हैं कि बीते दो दशकों के दौरान देश में आटोमोबाइल उद्योग ने बेहद तरक्की की है और साथ ही बेहतर सड़कों के जाल ने परिवहन की कोशिश बढ़ावा दिया है। यह किसी विकासशील देश की प्रगति के लिए अनिवार्य भी है कि वहां संचार व परिवहन की पहुंच आम लोगों तक हो।

विडंबना है कि हमारे यहां बीते इन्हीं सालों में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की उपेक्षा हुई व निजी वाहनों को बढ़ावा दिया गया। रही-सही कसर बैंकों ने आसान कर्ज ने पूरी कर दी और अब इंसान दो कदम पैदल चलने के बनिस्पत दुपहिया ईधन वाहन लेने में संकोच नहीं करता है। असल में सड़कों पर वाहन दौड़ा रहे लोग इस खतरे से अंजान ही हैं कि उनके बढ़ते तनाव या चिकित्सा बिल के पीछे सड़क पर रफ्तार के मजे का उनका शौक भी जिम्मेदार है। शहर हों या हाईवे-जो मार्ग बनते समय इतना चौड़ा दिखता है, वही दो-तीन सालों में गली बन जाता है। यह विडंबना है कि महानगर से लेकर कस्बे तक और सुपर हाईवे से लेकर गांव की पक्की हो गई पगडंडी तक, सड़क पर मकान व दुकान खोलने व वहीं अपने वाहन या घर की जरूरी सामन रखना लोग अपना अधिकार समझते हैं।

पूरे देश में सड़कों पर अवैध और ओवरलोड वाहनों पर तो जैसे अब कोई रोक है ही नहीं। पुराने स्कूटर को तीन पहिये लगा कर बच्चों को स्कूल पहुंचाने से ले कर मालवाहक बना लेने या फिर बमुश्किल एक टन माल ढोने की क्षमता वाले छोटे स्कूटर पर लोहे की बड़ी बॉडी कसवा कर अंधाधुंध माल भरने, तीन सवारी की क्षमता वाले टीएसआर में आठ सवारी व जीप में 25 तक सवारी लादने फिर सड़क पर अंधाधुंध चलने जैसी गैरकानूनी हरकतें कश्मीर से कन्याकुमारी तक स्थानीय पुलिस के लिए ‘सोने की मुरगी’ बन गए हैं। इस तरफ भी देखना जरूरी है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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