
पहला प्रकरण
पंचकोसी यात्रा मार्ग और पड़ाव पर 3700 टॉयलेट बनाने थे। मॉनीटरिंग और कार्य की गुणवत्ता का दायित्व नगर निगम के सहायक यंत्री पीयूष भार्गव का था। टॉयलेट उचित गुणवत्ता के नहीं बनाए गए। नंबरिंग, लाइट लगाना, आसपास चूरी डलवाने सहित सफाई के इंतजाम भी नहीं किए। ऐसे में पंचक्रोशी यात्रियों को असुविधा का सामना करना पड़ा। पड़ाव स्थलों पर निरीक्षण पंजी में भार्गव की टीप भी नहीं पाई गई। जिला पंचायत सीईओ रुचिका चौहान की जांच रिपोर्ट में भी टॉयलेट का निर्माण घटिया तरीके से होना बताया गया है। लापरवाही के लिए नगर निगम के सहायक यंत्री पीयूष भार्गव को दोषी माना है।
दूसरा मामला
सिंहस्थ में मप्र पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी द्वारा 37 करोड़ रुपए से बिजली के पोल लगाने का ठेका दिया गया था। पोल पर नंबरिंग नहीं की गई। कंपनी ने रजिस्टर्ड 60 ठेकेदारों में से मात्र 8 से काम करवाए। इसके अलावा पोल निकालने के लिए अलग से करीब 4 करोड़ रुपए का ठेका दिया गया। इससे शासन को आर्थिक नुकसान हुआ। प्रारंभिक रूप से बिजली कंपनी के अधीक्षण यंत्री एनसी गुप्ता को जिम्मेदार माना गया है।