वर्षा ऋतु में कैसा हो आहर विहार

ऋतु शब्द कला विभाग की ओर संकेत करता है। काल विभाग से तात्पर्य समय का विभागन है। इसी आधार पर आयुर्वेद के प्राचीन मनीषियों ने सम्पूर्ण वर्ष के बारह माह को विभाजित कर छः ऋतुऐं बनायी हैं। प्रत्येक ऋतु दो महीने की मानी गई है। इसी के अनुसार सावन तथा भादो के दो महीने वर्षा ऋतु के रहते है।

ग्रीष्म ऋतु समाप्त होने पर वर्षा ऋतु का आगमन होता है। ग्रीष्म ऋतु में सूर्य का प्रकाश अत्यन्त उष्ण (तेज) होने के कारण सम्पूर्ण वायुमण्डल अत्यंत गर्म हो जाता है, जिससे मनुष्य के शरीर के आवश्यक पोषक तत्व (रस आदि धातु) का शोषण हो जाने से पाचन शक्ति (भोजन पचाने की शक्ति) मंद हो जाती है, जिससे  हम ग्रीष्म ऋतु में तथा इसके बाद भी शारीरिक दुर्बलता महसूस करते हैं।

ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की प्रखर किरणों से तपी हुई धरती पर वर्षा ऋतु का जल गिरने से भाप निकलती है एवं लगातार वर्षा होने के कारण जल में तथा धरती में आयुर्वेद मतानुसार अम्लीय गुण की वृद्धि हो जाती है। वहीं दूसरी ओर पाचन शक्ति के मंद हो जाने के कारण आचार्यों के अनुसार वर्षा ऋतु में वात-पित्त-कफ तीनों ही दोष प्रकुपित होने लगती हैं जिसके कारण हमारा शरीर में विभिन्न रोगों के होने की संभावना होती है।

अतः वर्षा ऋतु में प्रकुपित हुए वात आदि दोष के कारण वर्षा ऋतु होने वाले रोगों से बचने के लिए मंद हुई पाचन शक्ति को बढ़ाने के लिए एवं मनुष्य को अपने स्वास्थ्य की रक्षा के लिए आहार विहार का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसलिए ऋषि मुनियों ने वर्षा ऋतु में स्वास्थ्य लाभ हेतु निम्न आहार-विहार का सेन करना उपययुक्त बताया है।

(1) शहद का प्रयोग वर्षा ऋतु में विशेष लाभकारी होता है। जहाँ तक हो सके सभी भोज्य पदार्थों के साथ शहद का सेवनल करना चाहिए।
(2) वर्षा ऋतु में गेहूँ, जौ एवं यव तथा मूंग एवं अरहर दाल तथा इससे निर्मित बने पदार्थों का प्रयोग मसालों के साथ करना चाहिए।
(3) सोंठ काली मिर्च पीपल (पिप्पली) दालचीनी, तेज पत्र, ज़ीरा, धनियां, अजवॉईन, राई, हींग आदि मसालों में प्रयुक्त होने वाले आहार दृव्यों का प्रयोग अपने भोजन के साथ करना चाहिए, जिससे वर्षा ऋतु में मंद हुई पाचन शक्ति बढ़ जाती है।
(4) वात दोष के शमन हेतु तेल एवं घृत से निर्मित पदार्थों का सेवन उचित मात्रा में करना चाहिए।
(5) लौकी, कुमड़ा, करेला, तरोई, निम्बू, करौंदा आदि सब्जियों का सेवन तथा इन सब्जियों का सौंठ कालीमिर्च आदि मसालों से युक्त सूप का सेवन करना हितकारी होता है।
(6) फलों में पपीता, जामुन, अमरूद, केले, नाशपाली आदि मधुर एवं अम्ल रस से युक्त आदि फालों का सेवन करना चाहिए।

जिस दिन वर्षा हो रही हो और नमी युक्त ठण्डी हवाऐं चल रहीं हों तो उसे विशेष रूप घृत एवं तेल युक्त हल्का एवं सुपाच्य भोजन करना चाहिए।

वर्षा ऋतु में ध्यान रखने योग्य बातें:- 
इस ऋतु में पहली बारिश के बाद वर्षा जल दूषित होने के कारण चर्म रोग, मलेरिया, टाइफाइड, अतिसार (डायरिया) पीलिया आदि संक्रात्मक रोग फैलने की संभावना रहती है, अतः पानी उबालकर पियें, भोजन सामग्री ढांककर रखें, ताकि मक्यिां आदि सूक्ष्मजीव न बैठें तथा खुले रखे आहार एवं पेय पदार्थों का सेवन न करें।
घर को स्वच्छ तथा सूखा रखें, यदि कमरों में सीलन हो तो हीटर, अंगीठी आदि जलाकर कमरें गर्म रखें क्योंकि घर के आसपास यदि गढडे हो तो उसमें पानी को इकट्ठा न होने दें
पानी एक जग एकत्रित होने पर मच्छरों की संख्या बढ़ती है इसलिए समय-समय पर उन स्थानों पर कीट नाशक दवाईयों का तथा कैरोसिन का प्रयोग करते हैं तथा रात्रि में घर के भीतर नीम के पत्तों, गुगगल आदि औषध द्रव्यों का धुंआ भी करना चाहिए ताकि मच्छर न हों।
इस ऋतु में मक्ख्यिायां भी प्रचुर मात्रा में देखी जाती है। ये मक्खियां इस ऋतु में होने वाले संक्रामक रोगों को फैलाने के लिए मुख्य वाहक का कार्य करती हैं अतः हमें अपनी तथा घर के आंगन को कीटनाशक द्रव्यों से साफ कराना चाहिए।
रात्रि में जमीन पर कदापि न सोना चाहिए क्योंकि विषैले कीड़े-मकोड़े सर्प, बिच्छू आदि के काटने का भय रहता है।
रात्रि में घर से बाहर जाते समय नंगे पांव न निकलें जूते-चाप्पल आदि पहने तथा साथ में लाठी, टॉर्च, लालटेन आदि साधनों को लेकर ही बाहर कदम रखें।
हल्के गरम पानी से स्थान करें तथा स्थान के पश्चात् शरीर को अच्छे से साफ करें एवं तेल की मालिश तथा उबटन का प्रयोग अवश्य करें।
यथासंभा बारिश में भीगने से बचे और यदि बारिश में यदि घर के बाहर जाना आवश्यक हो तो छाता, रेनकोट (बरसाती) का प्रयोग करें यदि किसी कारणवश वर्षा में भीग जायें तो शरीर को अच्छे तरह से पोंछकर सिर को सुखा लें तत्पश्चात् शरीर पर चंदन, अगरू, उसीर आदि सुगंधित द्रव्यों का लेप कर सकते हैं परंतु आजकल सामान्यतः देखा जाता है कि स्थान के पश्चात् लोग पाउडर, क्रीम, डिओ आदि संगंधित द्रव्यों का प्रयोग करते हैं जिसके कारण भविष्य में एलर्जी की संभावना होती है, क्योंकि ये सभी रासायनिक द्रव्यों से बनाये जाते हैं।

वर्षा ऋतु में वर्जित आहार-विहार:-
  1. जल में घोला हुआ सत्तू।
  2. ठण्डा बासी भोजन।
  3. दिन में सोना।
  4. रात्रि में खुले आकाश के नीचे सोना
  5. हरी साग-सब्जियों का सेवन जैसे पालक, मैंथी, गोभी, पत्ता-गोभी, भटा आदि का सेवन न करें।
  6. ओस में नंगे पैर न चलें।
  7. पानी में न भीगें एवं गीले वस्त्र व पहने।

आयुर्वेद मतानुसार वर्षा ऋतु में मुख्य रूप से बात वात दोष का प्रकोप होता है, वात दोष ही अपेन साथ पित्त-कफ दोष को प्रकुपित करता है। इस कारण विशेष रूप से वातशामक आहार द्रव्यों का प्रयोग करना चाहिए।
इन सभी तथ्यों का ध्यान यदि वर्षा में रखा जाये तो हम न केवल स्वस्थ रह सकते हैं अपितु शरीर में होने वाले संक्रामक रोगों से भी बचा जा सकता है।

लेखन:-
डॉ. मंजुला मिश्रा, व्याख्याता
डॉ. पंकज मिश्रा, व्याख्याता
शासकीय स्वशासी आयुर्वेद महाविद्यालय 
एवं चिकित्सालय जबलपुर (म.प्र.)
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