मत दो नियमितीकरण और समानवेतन, बस हर महीने वेतन दे दो

आज से लगभग छः वर्षों पहले मलेरिया बहुउद्देशीय कार्यकर्ताओं की संविदा के आधार पर भर्ती की गई थी। जिसमें चयनित अभ्यर्थियों की हाई स्कूल योग्यता थी 75% से 90% तक, साथ ही कोई साइंस से हायर सेकेंडरी में टॉप किया हुआ तो कोई ग्रेजुएट। कुछ भाइयों ने तो *पढाई छोड़ कर* नौकरी ज्वाइन कर ली, उन्हें क्या पता था कि न वो पढाई पूरी कर पाएंगे और न ही किसी लायक बचेंगे।

नौकरी क्या लगी घर वालों ने शादी कर दी। बच्चे हो गए। एक टॉपर की ज़िन्दगी को क्या से क्या बना दिया। जिला अधिकारी कहे कि मलेरिया का काम करो, BMO और MO कहे के सारे काम करो। हाजिरी पे हस्ताक्षर तो लोकल अधिकारी के ही होंगे। अब बेचारा MPW क्या करे?

मन में सोचे, कहाँ फंस गया यार। अब तो न जिया जाये और न मरा जाए। अप्रैज़ल अधिकारी को मलेरिया का रिकॉर्ड चाहिए, परफॉरमेंस चाहिए। जब बेचारे को मलेरिया का काम करने ही न दिया गया हो तो क्या मुंह दिखाये अप्रैज़ल अधिकारी को? जायेगा भी तो नौकरी से निकाल देंगे, जैसा कि कुछ साथियों के साथ हुआ है।

वेतन की बात न ही करें तो अच्छा होगा। क्योंकि हम तो जंगली हैं, वो भी लावारिस। आदेश हैं कि मुख्यालय पर रहो, पर वेतन का नाम मत लो। साल में 3-4 बार ही जमा हो पाता है वेतन। घर वाले भी त्यौहारों पे मुरझाये चेहरे लिए इंतजार करते हैं।

एक स्वस्थ दिमाग़, जिसकी जीवन भर प्रशंसा होती आई थी आज वो अधिकारियों और अन्य चापलूसों के द्वारा अपमानित हो रहा है। फिर भी चुपचाप है कि चलो भगवान सब अच्छा करेगा।

हम कर्मचारियों की वो प्रजाति है जिस पर महँगाई का भी कोई असर नहीं होता। मंत्री, राजनेता अपना वेतन जब चाहे मन मुताबिक बढ़ा लेते हैं तब कर्मचारियों का ये तबका रोते हुए कहता है कि भगवान है कहाँ रे तू?

टॉपर्स की एक पूरी फ़ौज को इतना लाचार और बेबस कभी नहीं देखा। न काम करने दिया जाता है, न समय पर वेतन दिया जाता है। काम भी ऐसे कराये जाते हैं जिसका मूल्यांकन ही संभव नहीं। जैसे राइटिंग वर्क। शाम को जब थक कर चूर हो जाता हूँ, तो यारों मैं भूखा ही सो जाता हूँ।

मत दो, 
मुझे नियमितीकरण मत दो, 
मुझे समान वेतन मत दो, 
पर मुझे मेरा काम तो करने दो, 
जो है उतना ही वेतन समय पर दे दो, तो बड़ा उपकार होगा।

क्योंकि प्रशासन से लड़ने की हिम्मत भी नहीं बची। न किसी से अब कोई उम्मीद है। बस जो चल रहा है, वो चल रहा है। पता नहीं कब तक? बस इतना पता है वो टॉपर लड़के अब किसी काम के नहीं रहे।
90% से पास हुआ एक मलेरिया बहुउद्देशीय कार्यकर्ता जो यहां अपना नाम लिखने तक की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा। 

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