पढ़िए, क्यों कोच्‍चि में वेटर की नौकरी कर रहा था 6000 करोड़ की कंपनी का वारिस

अहमदाबाद। यह कहानी उन तमाम बेटों के लिए मिसाल है जो रईस पिता की संतान हैं और उन तमाम पिताओं के लिए भी सीख है जो अपने बच्चों को दुनिया की तमाम सुविधाएं मुहैया करा रहे हैं। यह भारतीय व्यापार की मजबूती का प्रतीक है और यह भारत के लिए गर्व की कहानी है। तो पढ़िए, क्योंकि कोच्चि के एक रेस्टोरेंट में वेटर की नौकरी करता मिला 6000 करोड़ की कंपनी का वारिस: 

वेटर का व्यवहार पसंद आया
गीको लॉजिस्‍टिक्‍स के फिनांशल हेड श्रीजीत को रेस्‍टोरेंट में अटेंडेंट के रूप में एक गुजराती युवक मिला। उसके अंग्रेजी भाषा के उपयोग व शालीनता भरे सर्विस से श्रीजीत इतने प्रभावित हुए कि अपने फर्म में बेहतर जॉब का ऑफर दे दिया। श्रीजीत के ऐसा करने पर उनके दोस्‍तों ने आपत्ति जताई और कहा कि किसी अजनबी के साथ इस तरह तुरंत विश्‍वास करना सही नहीं। युवक ने इस संदर्भ में चर्चा के लिए एक मीटिंग का आग्रह किया। श्रीजीत ने तत्काल समय दे दिया। इसके बाद जो हुआ वो चौंकाने वाला था। 

वो तो 6000 करोड़ की कंपनी का वारिस निकला
वेटर का काम कर रहे द्रव्‍य ढोलकिया सूरत के हीरों के व्‍यापारी के परिवार से आते हैं जिनका वार्षिक टर्न ओवर 1,025 करोड़ रुपए से अधिक है। द्रव्‍य के पिता सावजी ढोलकिया सूरत में हीरों का कारोबार करते हैं। उनकी कंपनी हरे कृष्णा डायमंड एक्सपोर्ट्स 6,000 करोड़ की कंपनी है और 71 देशों में फैली हुई है। सावजी चाहते तो अपने बेटे को दुनिया के सभी एशोआराम यूं ही मुहैया करा सकते थे, लेकिन वह अलग हैं।

ये वही हैं जिन्होंने कर्मचारियों को बोनस में फ्लैट्स दिए थे
कोच्‍चि में वे अपने परिवार की परंपरा को निभाने के लिए मौजूद थे। सावजी ने अपने 21 साल के बेटे द्रव्य ढोलकिया को एक महीने तक साधारण जिंदगी जीने और साधारण सी नौकरी करने को कहा। द्रव्य अमेरिका से मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहे हैं। फिलहाल वह अपनी छुट्टियों में भारत आए हुए हैं। 21 जून को वह 3 जोड़ी कपड़ों और कुल 7,000 रुपयों के साथ कोच्चि शहर आए। पिता का निर्देश था कि उनके पास जो 7,000 रुपए हैं, वह इमरजेंसी के लिए है। सावजी का नाम इससे पहले तब चर्चा में आया था जब उन्होंने अपनी कंपनी के कर्मचारियों को बोनस के तौर पर कार और फ्लैट्स तोहफे में दिया था।

आम बेरोजगार युवक बनाकर भेजा
सावजी ने कहा, 'मैंने अपने बेटे से कहा कि उसे अपने लिए पैसे कमाने के लिए काम करना होगा। उसे किसी एक जगह पर एक हफ्ते से ज्यादा नौकरी नहीं करनी होगी। वह न तो अपने पिता की पहचान किसी को बता सकता है और न ही मोबाइल का इस्तेमाल कर सकता है। यहां तक कि घर से जो 7,000 रुपए उसे मिले हैं, वह भी उसे इस्तेमाल नहीं करना है।' बेटे के साथ इस तरह के व्‍यवहार के बारे में सावजी ने कहा, 'मैं चाहता था कि वह जिंदगी को समझे और देखे कि गरीब लोग किस तरह नौकरी और पैसा कमाने के लिए संघर्ष करते हैं। कोई भी यूनिवर्सिटी आपको जिंदगी की ये बातें नहीं सिखा सकता। ये बस जिंदगी के अनुभवों से ही सीखी जा सकती हैं।'

बेटे ने स्वीकारी चुनौती
द्रव्य ने पिता की दी हुई चुनौती को स्वीकार कर लिया है। वह ऐसी जगह जाना चाहते थे जहां की स्थितियां उनके लिए नई हों और यहां तक कि वहां की भाषा भी अलग हो। सावजी बताते हैं, 'उसने कोच्चि आने का फैसला किया। उसे मलयालम नहीं आती है और यहां हिंदी आमतौर पर नहीं बोली जाती है।'

60 जगहों से भगा दिया गया
अपने अनुभवों के बारे में बताते हुए द्रव्य ने कहा, 'शुरू के 5 दिन मेरे पास न तो नौकरी थी और न ही रहने की कोई जगह। मैं 60 जगहों पर नौकरी मांगने गया और लोगों ने इन्कार कर दिया। मुझे पता चला कि लोगों के लिए नौकरी की क्या अहमियत होती है।'

एक महीने में 4000 रुपए कमाए
द्रव्य जहां भी नौकरी मांगने गए, उन्होंने झूठी कहानी सुनाई। उन्होंने कहा कि वे गुजरात के एक गरीब परिवार में पैदा हुए हैं और केवल 12वीं तक की पढ़ाई कर सके हैं। द्रव्य को पहली नौकरी एक बेकरी में मिली। फिर उन्होंने एक कॉल सेंटर, जूते की दुकान और मैकडॉनल्ड्स में काम किया। पूरे महीने अलग-अलग जगहों पर काम करने के बाद द्रव्य ने 4,000 रुपए कमाए।

अब समझ आया कर्मचारियों का दर्द
द्रव्य कहते हैं, 'पहले कभी मैंने पैसे की चिंता नहीं की थी और वहां मैं दिन में 40 रुपए के खाने के लिए संघर्ष कर रहा था। मुझे लॉज में रहने के लिए रोजाना के 250 रुपए भी चाहिए होते थे।' द्रव्य मंगलवार को एक महीने बाद वापस अपने घर लौटे हैं। अपने देश की अच्‍छी यादें लेकर युवा डायमंड व्‍यापारी 5 अगस्‍त को न्‍यूयार्क जा रहे हैं जहां वे पेस यूनिवर्सिटी से बीबीए करेंगे।
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