
ये खुलासा विभाग के आला अधिकारियों ने विद्यार्थियों द्वारा दिए गए दस्तावेजों और एमपी बोर्ड द्वारा दिए साढ़े छह लाख विद्यार्थियों के डाटा के मिलान के दौरान किया है। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि एमपी बोर्ड द्वारा दिए गए डाटा में काफी गलतियां थीं। इसमें विद्यार्थियों के नाम के साथ उनकी केटेगरी में काफी अंतर था।
डाटा में विद्यार्थियों के नाम के साथ उनकी जाति में काफी अंतर दिया गया है। इसके कारण विद्यार्थियों को आरक्षित और अनारक्षित में अंतर करना काफी मुश्किल हो रहा था। इसलिए विद्यार्थियों से सत्यापन के दौरान मूल दस्तावेज मांगने की जरुरत पड़ी है। एमपी बोर्ड सही डाटा भेजता, तो उन्हें विद्यार्थियों का सत्यापन करने में ज्यादा परेशानी नहीं आती और काफी विद्यार्थियों को सत्यापन कर उन्हें कालेज आवंटित कर दिया जाता।
छात्रवृत्ति में आ सकती थी परेशानी
विभाग का कहना है कि एमपी बोर्ड द्वारा दिए गए डाटा के हिसाब से विद्यार्थियों को प्रवेश दिया जाता तो स्टूडेंट्स को छात्रवृत्ति लेने में काफी परेशानी आ सकती थी। यहां तक उन्हें छात्रवृत्ति का सही लाभ ही नहीं मिल पाता। यही कारण के एमपी बोर्ड के डाटा को दरकिनार कर विद्यार्थियों के मूल दस्तावेजों से मिलाकर उन्हें सत्यापित किया गया और उन्हें कालेज आवंटित किए गए हैं।
विद्यार्थियों से कराया सुधार
एमपी बोर्ड के एक अधिकारी का कहना है कि 12 वीं में विद्यार्थियों के परीक्षा फार्म आनलाइन जमा कराए जाते हैं। इसमें विद्यार्थियों से पूरी जानकारी आनलाइन ही ली जाती है। इसके बाद दोबारा आवेदन फार्म संशोधन करने के लिए जाते हैं। विभाग को संशोधन के पूर्व के डाटा दे दिया गया है। एमपी बोर्ड ने संशोधन के बाद के डाटा से अंकसूची प्रकाशित कराई हैं, जिसके कारण ये गड़बड़ी सामने आई है।