इंदौर। मप्र के कई शहरों, खासकर इंदौर एवं भोपाल में प्रशासन आए दिन धारा-144 लागू कर देता है। हाईकोर्ट में दायर एक जनहित याचिका में याचिकाकर्ता तपन भट्टाचार्य के वकील आनंद मोहन माथुर ने कहा कि यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है। इस तरह जब चाहे धारा-144 लागू नहीं की जा सकती। शासन की ओर से एएजी सुनील जैन ने कहा कि परिस्थितियों के विश्लेषण के बाद ही आदेश जारी किए जाते हैं। याचिकाकर्ता को आपत्ति है तो वे धारा-144 के तहत दिए गए प्रावधानों के मुताबिक अपील कर सकते हैं। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा।
मंगलवार को शासन ने एडीएम दीपक सिंह का शपथ-पत्र देते हुए याचिका खारिज करने की मांगी की थी। बुधवार सुबह साढ़े 10 बजे हाई कोर्ट में याचिका पर बहस शुरू हुई, जो करीब सवा 12 बजे तक चली। एडवोकेट माथुर ने कहा कि प्रशासन धारा 144 के तहत प्रतिबंधात्मक आदेश ऐसे जारी कर रहा है जैसे ये रुटीन आदेश हो। वह लोगों के बोलने, एकत्र होने, अभिव्यक्ति पर रोक लगा रहा है। सरकार लोकतंत्र ही खत्म कर रही है। माथुर ने प्रशासन द्वारा जारी प्रतिबंधात्मक आदेश पढ़कर सुनाए और कहा कि सभी आदेश एक जैसे हैं। इसमें तारीख के सिवाय कुछ नहीं बदला।
अधिकारियों को एक साल की ट्रेनिंग दो
एडवोकेट माथुर ने कहा कि प्रतिबंधात्मक आदेश किन परिस्थितियों में जारी किया जा सकता है यह सुप्रीम कोर्ट के न्याय दृष्टांतों में स्पष्ट है। उन्होंने कई न्याय दृष्टांत पेश किए। आगे कहा कि अधिकारियों को यह पता ही नहीं है कि धारा-144 किस स्थिति में लागू की जाना चाहिए। सरकार को इन अधिकारियों को इस तरह के आदेश जारी करने की कम से कम एक साल की ट्रेनिंग देना चाहिए।