
फिलहाल पढ़िए डॉ आर के नगाइच सागर मप्र का यह ईमेल जिसमें उन्होंने इस बदलाव की जानकारी देते हुए प्रक्रिया निरस्त करने की मांग की है:
मप्र शासन ने 25 साल बाद पीएससी के माध्यम से कालेजो में सहायक प्राध्यापक के पद हेतु विज्ञापन फरवरी 2016 मे निकाला। इसमें योग्यता नेट स्लेट या 2009 रेगुलेशन के अनुसार पीएचडी थी। ऐसे हज़ारो लोग जो 2009 के पूर्व पीएचडी है आवेदन ही नही कर पाये। मप्र मे 2009 नियम 2012 में लागू होने से अब तक कुछ ही लीग पीएचडी कर पाये। मप्र ने स्लेट का आयोजन 15 वर्ष पहले कराया। जाहिर है कि इस भर्ती मे मप्र के गिने चुने लोग ही सम्मलित हो पाएंगे। 2009 के पूर्व के पीएचडी देश स्तर पर अपने हक़ के लिए लड़े और अंततः 4 मई 2016 को यूजीसी ने राजपत्र में 2009 रेगुलेशन को संशोधित कर 2016 रेगुलेशन बनाया। जिसमे 2009 के पहले के पीएच डी धारको को योग्य माना। इस नियम को सम्पूर्ण देश में लागू कर दिया गया लेकिन मप्र पीएससी मै आवेदन की अंतिम तारीख़ 28 अप्रैल थी।
मप्र शासन हम 40 हज़ार लोगों को मौका ही नही दे रही, जबकि जिस नियम से आवेदन बुलाये वे नियम ही बदल गए। हमें नौकरी नही बस किस्मत अजमाने का अवसर चाहिए। कभी हम मप्र के लोगों को मौका ही नही मिला। ये सच है कि पीएससी के पास पर्याप्त आवेदन ही नही आये। यदि पता किया जाये तो 70 प्रतिशत आवेदन बाहर राज्यो के होंगे।
जम्मू कश्मीर और छग ने अपने 2014 के विज्ञापन में संशोधन कर 2016 रेगुलेशन लागू कर 2009 के पूर्व के पीएचडी धारको को मौका दिया। मप्र ने 2016 के विज्ञापन में 2 माह बाद संशोधित नियमो को लागू नही किया पीएससी ने अगस्त मे परीक्षा कराने की तैयारी कर ली है।
हम सभी 2009 से पहले के पीएचडी धारी हज़ारो लोग निवेदन करते है कि हमें इस लंबे समय के इंतज़ार से वंचित न किया और हमे मोका दिया। ताकि कम से मप्र के लोग इस परीक्षा मे सम्मिलित हो सके।