योगियों के देश में योग

राकेश दुबे@प्रतिदिन। प्रधानमंत्री से बैर भाव निकलने के लिए प्रतिपक्ष कुछ भी कहे, परन्तु योग एक अद्भुत विधि है, जो आज के सेकुलर और वैज्ञानिक वातावरण को पूरी तरह से पोषित करती है। यह भारत में पैदा जरूर हुआ, लेकिन भारत का इस पर कोई अधिकार नहीं है। ठीक वैसे ही, जैसे वैज्ञानिक आविष्कार किसी एक देश में होते हैं, मगर प्रमाणित होते ही वे पूरी धरती के हो जाते हैं। गुरुत्वाकर्षण का नियम इंग्लैंड में खोजा गया, लेकिन सेब जैसे इंग्लैंड में जमीन पर गिरता है, वैसे ही भारत में भी जमीन पर गिरता है। यह किसी एक देश या धर्म की बपौती नहीं है। योग की भी वही स्थिति है। लेकिन योग क्या है, इसके बारे में अधिकतर लोग नहीं जानते। निन्यानबे प्रतिशत लोग योग के आसन और प्राणायाम करके ही खुद को योगी मान लेते हैं। ये तो योग के केवल दो छोटे से अंग हैं। योग एक बहुत लंबी यात्रा है, जो शरीर के साथ शुरू होती है, लेकिन आगे क्रमश: सूक्ष्म और गहरी होती जाती है, मन के पार समाधियों के आसमान खुलते जाते हैं।

पतंजलि के योग सूत्रों को योग का मार्गदर्शक मानें, तो उन्होंने प्रारंभ में ही योग की परिभाषा कर दी हैै- योगश्चित्तवृत्ति निरोध:। अर्थात योग है चित्त की वृत्तियों, यानी मन का रुक जाना। सुनने में यह आसान लगता है, लेकिन मनुष्य की सबसे प्रबल समस्या उसका मन ही है। कैसे उसे वश में किया जाए? आसन-प्राणायाम से यह नहीं होगा। वहीं रुक गए, तो योग एक व्यायाम से अधिक कुछ नहीं होगा। दुर्भाग्य से वही हो गया है। लाखों लोग योग को सीखते-सिखाते हैं, फिर यह पृथ्वी इतनी संकट में क्यों है? मनुष्य का जीवन इतना तनावपूर्ण क्यों है? योग को सही अर्थों में समझना जरूरी है। योग में ‘युज’ धातु है, उसका अर्थ है जोड़ना। मनुष्य के भीतर जो भी खंड-खंड चीजें हैं, उन्हें एक-दूसरे से जोड़ते जाना। मन को बुद्धि से, बुद्धि को भाव से, भाव को अंतस से। यही योग का लक्ष्य है। 
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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