
देश में इस समय स्वास्थ्य का बाजार सौ अरब डॉलर का है, जो 2020 तक बढ़ कर 280 अरब डॉलर हो जाएगा| इसकी वार्षिक विकास दर 22 प्रतिशत के करीब है|मोटे अनुमान के अनुसार भविष्य में देश के अस्पतालों में छह से सात लाख अतिरिक्त बिस्तरों की जरूरत है| इसे पूरा करने के लिए पच्चीस से तीस अरब डॉलर का निवेश करना होगा| निजी क्षेत्र स्वास्थ्य-सेवा में भारी मुनाफे को देखते हुए निवेश को तैयार है|यही कारण है कि भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में 2000 से 2015 तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के तौर पर 3.4 अरब डॉलर की पूंजी आई|
हालांकि अपने देश में स्वास्थ्य सेवाएं बनिस्बत सस्ती हैं, और इस कारण भी विदेशी निवेश बढ़ रहा है| अमेरिका व यूरोप में स्वास्थ्य सेवाएं काफी मंहगी हैं, और बड़ी संख्या में वहां से मरीज इलाज के लिए भारत आने लगे हैं| इसे स्वास्थ्य पर्यटन का नाम दिया जा रहा है| स्वाभाविक-सी बात है कि विदेशी यहां इलाज के लिए आएंगे तो वे यहां स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश भी करना चाहेंगे.
अपने देश में दो व्यवस्थाएं हमेशा चलती हैं| एक व्यवस्था वह है जो सरकारें चलाती हैं, और दूसरी वह जो समाज चलाता है| भारत के संदर्भ में समाज सरकारों से अधिक मजबूत रहा है, और इसलिए वर्तमान व्यवस्था में सरकार द्वारा सभी क्षेत्रों में पूरा नियंत्रण करने के बाद भी समाज-संचालित व्यवस्थाएं भी बड़े पैमाने पर चल रही हैं| स्वास्थ्य क्षेत्र की अगर बात करें तो बड़ी संख्या में आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा और योग के केंद्र चलते हैं, जो अंतत: स्वास्थ्य सेवा ही प्रदान करते हैं| सरकार को समाज द्वारा संचालित स्वास्थ्य सेवाओं से तालमेल बिठाना चाहिए इसी में देश का भला है |
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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