तरकुला देवी मंदिर: यहां अंग्रेजों की बलि दी जाती थी

Bhopal Samachar
उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के पास का एक कस्बा है, चौरी-चौरा। 4 फरवरी 1922 को भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी थी, जिससे उसमें छुपे हुए 22 पुलिस कर्मचारी जिन्दा जल के मर गए थे। इस घटना को चौरीचौरा कांड के नाम से जाना जाता है। चौरी-चौरा की इसी क्रांतिकारी धरती पर देवीपुर गांव में मां तरकुलहा (तरकुला) देवी मंदिर है। इस मंदिर में कभी अंग्रेजों की बलि चढ़ाई जाती थी।

यह 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम से पहले की बात है। उस समय इस इलाके में जंगल हुआ करता था। यहां से गुर्रा नदी होकर गुजरती थी। इस जंगल में डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह रहा करते थे। नदी के तट पर तरकुल (ताड़) के पेड़ के नीचे पिंडियां स्थापित कर वह देवी की उपासना किया करते थे। तरकुलहा देवी बाबू बंधू सिंह कि इष्टदेवी कही जाती हैं।

घने जंगलों में विराजमान सुप्रसिद्ध मां तरकुलहा देवी मंदिर आज तीर्थ के रूप में विकसित हो चुका है। हर साल लाखों श्रद्धालु मां का आशीर्वाद पाने के लिए आते हैं। मां भगवती का यह मंदिर कभी स्वतंत्रता संग्राम का भी एक प्रमुख हिस्सा रहा है।

आजादी से पहले हर भारतीय का खून अंग्रेजों के जुल्म की कहानियां सुनकर खौल उठता था। इस समय देश में कई क्रांतिकारी हुए, जिन्होंने अपने-अपने तरीके से देश को अंग्रेजों के चंगुल से छुड़ाने की हर संभव कोशिश की। इन्हीं क्रांतिकारियों में से एक थे बंधू सिंह। बचपन से अंग्रेजी हुकूमत के जुल्मों की कहानियां सुनकर बड़े हुए बंधू सिंह के दिल में भी अंग्रेजों के खिलाफ आग जलने लगी।

बंधू सिंह गुरिल्ला लड़ाई में माहिर थे, इसलिए जब भी कोई अंग्रेज उस जंगल से गुजरता, बंधू सिंह उसको मार कर उसके सर को काटकर देवी मां के चरणों में चढ़ा देते थे। पहले तो अंग्रेज यही समझते रहे कि उनके सिपाही जंगल में जाकर लापता हो जा रहे हैं, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें भी पता लग गया कि अंग्रेज सिपाही बंधू सिंह के शिकार हो रहे हैं।
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