
मप्र में वर्ष 2007 में जब यह एक बड़ा मुद्दा बना था, तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लाभ के इन पदों निगम-मंडलों व फेडरेशन समेत अन्य संस्थाओं की संख्या बढ़ाकर 100 से ज्यादा कर दी थी। इसके बावजूद स्काउट गाइड को इस दायरे में आने से छूट दी गई, जिसके चलते मध्यप्रदेश के दो मंत्री भी ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मामले में घिर सकते हैं। भाजपा के मुरैना महापौर अशोक अर्गल इस स्काउट गाइड संस्था के प्रदेश अध्यक्ष है। पारस जैन को बकायदा इस संस्था में एक कमरा आवंटित किया गया है।
सूत्रों के अनुसार इन नेताओं को न केवल वित्तीय अधिकार प्राप्त है बल्कि ये लोग संस्था को विभिन्न समितियों में भी मौजूद है। बताया जाता है कि संस्था की तरफ से मुख्य आयुक्त के लिए एक लग्जरी कार आवंटित कर रखी है।
सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है मामला
प्रदेश सरकार द्वारा लाभ के पद की व्याख्या का मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। कोर्ट ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया है कि एक तरफ सरकार ने उन सभी पदों का नाम अपने संसोधन में लिखा है दूसरी तरफ यह भी लिखा है की कोई भी पद लाभ का पद नहीं माना जाएगा।
कांग्रेस में दम हुई तो खिसक जाएगी कुर्सी
इस मामले को लेकर यदि विपक्ष चुनाव आयोग और राज्य सरकार पर दबाव बनता है तो मंत्रियो को अपना पद तक छोड़ना पड़ सकता है या उनकी सदस्यता तक खतरे में पड़ सकती है । गौरतलब है की दिल्ली में इसी तरह के मामले में भाजपा आप विधायकों की सदस्यता समाप्त कर पुनः चुनाव की मांग कर रही है।