
रानी के किए थे समझौते
कहा जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई ने जीवित रहते कभी झांसी पर अंग्रेजों का आधिपत्य नहीं होने दिया, लेकिन इतिहास में दर्ज कुछ पन्ने बयां करते हैं कि ऐसा नहीं है। झांसी के राजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद अंग्रेजों के समझौता कर लिया था। झांसी का संचालन अंग्रेज कर रहे थे और रानी किले में रहतीं थीं। बाद में वो झांसी में ही एक दूसरे भवन में चलीं गईं। अंग्रेजों की ओर से उन्हें पेशंन दी जाती थी।
रानी लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों के सामने रखी थी ये शर्तें...
रानी लक्ष्मीबाई ने 3 दिसंबर 1853 को गर्वनर जनरल लार्ड डलहौजी के नाम पहली बार एक खत लिखा। इसमें उन्होंने गोद लिए पुत्र दामोदर राव को वारिस का अधिकार स्वीकार करने का अनुरोध किया था। झांसी रियासत और कंपनी सरकार के बीच 1817 और 1842 में हुई संधि को आगे बढ़ाते हुए दोनों सरकारों की दोस्ती की याद दिलाई गई। उन्होंने आगे लिखा था कि हिंदूधर्म के अनुसार गोद लिए पुत्र को माता-पिता के सारे अधिकार का वारिस माना जाता है। हिंदुस्तान में यही प्रथा है।
इन सारी बातों को कहते हुए रानी ने आगे लिखा था कि इन सबूतों के आधार पर दामोदर राव को गंगाधर राव का कानूनी वारिस घोषित किया जाना चाहिए। कंपनी सरकार ने दतिया, ओरछा और जालौन रियासत में गोद लेने की परमिशन दी है, इसकी याद भी लक्ष्मीबाई ने अपने पत्र द्वारा करा दी। लक्ष्मीबाई ने काफी दिनों तक जवाब की प्रतीक्षा की लेकिन कोई जवाब नहीं आया।
अंग्रेजों ने पेंशन बंद कर दी
कुछ समय बाद अंग्रेजों ने रानी लक्ष्मीबाई की पेंशन भी बंद कर दी। अपनी पेंशन फिर से शुरू करवाने के लिए भी उन्होंने महारानी विक्टोरिया तक पत्राचार किया परंतु जब उनकी पेंशन फिर से शुरू नहीं की गई तब वो निराश हो गईं।
तात्याटोपे ने की मदद
रानी लक्ष्मीबाई की इस हालत का पता जब 1857 की क्रांति के जनक तात्याटोपे को चला तो उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई की मदद करने का निर्णय लिया। उन दिनों तात्याटोपे गोपालपुर राज्य के जंगलों में छिपे हुए थे। वर्तमान में गोपालपुर मप्र के शिवपुरी जिले में स्थित है। यहां से तात्याटोपे ने रानी लक्ष्मीबाई को सुरक्षित झांसी से गोपालपुर लाने के लिए सैनिक टुकड़ी भेजी। इस सैनिक टुकड़ी के आ जाने के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने अपने पुराने सहयोगियों के साथ मिलकर झांसी के किले पर हमला किया और उस पर वापस कब्जा कर लिया, लेकिन वो ज्यादा समय तक किले में टिक नहीं पाईं। अंग्रेजों ने किले की घेराबंदी कर ली थी और लगातार हमले कर रहे थे।
तोपची गुलाम गौस खां की मौत से निराश
रानी लक्ष्मीबाई की सेना में एक सर्वश्रेष्ठ तोपची था गुलाम गौस खां। झांसी के किले पर मौजूद सबसे बड़ी तोप वही चला पाता था। इस तोप ने किले के नीचे घेराबंदी कर रही अंग्रेज सेना के छक्के छुड़ा दिए थे परंतु अंग्रेजों ने एक कुटिल चाल चलकर गुलाम गौस खां को मार डाला। इसके बाद से ही रानी लक्ष्मीबाई निराश हो गईं थीं।