बारिश में जहरीली हो जाएगी भोपाल की झील

भोपाल। झील संरक्षण के लिए जापान के सहयोग से आई भोजवेट लैंड योजना में 247 करोड़ रुपए तो खर्च हो गए, लेकिन तालाब में मिलने वाले 27 गंदे नाले आज भी झील को प्रदूषित कर रहे है। बड़े तालाब में कुल 27 नाले चिन्हित किए गए थे जिनमें से दर्जन भर नाले रोजाना तालाब में गंदगी घोल रहे हैं। 15 नाले ऐसे हैं जो बारिश के दौरान सक्रिय हो जाते हैं। इनमें बैरागढ़ और खानूगांव के अलावा कोहेफिजा और फतेहगढ़ के नाले ऐसे हैं जो पूरे साल गंदगी घोलते हैं। 

रहा सवाल अतिक्रमण मुक्त करने का तो बोट क्लब पर झोपड़े तो हटा दिए गए, लेकिन होटल आज भी मौजूद हैं। उधर छोटी झील में धोबी घाट हटाने की कवायद की गई, इसके बावजूद एमवीएम कालेज के पीछे कपड़े धोने का सिलसिला लगातार जारी है।

2004 में उठे थे सवाल
तालाब को संवारने की योजना में पंपिंग स्टेशन बने, सड़क बनी और पुल भी बन गया, इसके बावजूद झील का पानी पवित्र न हो सका। जानकारों का कहना है कि 2004 में जब योजना बंद की गई तब भी इस पर सवाल उठाए गए थे, लेकिन किसी ने भी इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया। भोजवेट लैंड परियोजना का मुख्य उद्देश्य नालों का मार्ग बदलना, झील को अतिक्रमण से मुक्त कराना और इसका गहरीकरण करना था। 

प्राधिकरण क्यों बंद हुआ
1994 में आई यह योजना लगातार दस साल तक क्रियाशील रही और जब बंद हुई तब इसकी लागत 340 करोड़ रुपए हो चुकी थी और योजना बंद होने के बाद लगभग 60 करोड़ रुपए बच गए जिससे झील संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना कर दी गई थी लेकिन वह भी बाद में बंद कर दिया गया और निगम में झील संरक्षण प्रकोष्ठ को ही झील संवारने का जिम्मा दे दिया गया। 

पंपिंग स्टेशन आज भी सक्षम
सूत्रों की माने तो जो पंपिंग स्टेशन बने वे आज भी सक्षम हैं लेकिन उनपर ध्यान नहीं दिया जा रहा। वीआईपी रोड और भदभदा पुल बनाने के बाद किसी ने भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि बड़ी और छोटी झील दोनों ही नालों से लबालब हो रही है।

कौन खा गया मिट्टी का पहाड़, कहां गायब हो गए 20 करोड़ के पेड़ 
भोजवेट लैंड योजना के तहत तालाब गहरीकरण कार्य किया गया। रिकार्ड में दर्ज है कि तालाब से नौ लाख क्यूबिक मीटर मिट्टी निकाली गई थी जो बकानियां में डंप की गई। अब लोग सवाल उठा रहे हैं कि मिट्टी का यह पहाड़ कहां गया। इसके अलावा बीस करोड़ रुपए की लागत से वृक्षारोपण भी किया गया था। जिसके तहत पन्द्रह लाख पेड़ लगाए गए। सूरज नगर, गौरा बिसनखेड़ी और अन्य आसपास के गांव में अब यह पेड़ नजर नहीं आते हें। सवाल यह उठता है कि 20 करोड़ का जो प्लान्टेशन किया गया था वह कहां गया। क्या वह फाइलों पर ही पूरा तो नहीं हो गया।
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