सरकार ने मप्र में वर्ग संघर्ष की स्थिति निर्मित कर दी

शोएब सिद्दीकी। असंवैधानिक ‘‘मप्र पदोन्नति नियम 2002’’ के फलस्वरूप विगत 14 वर्षो से सामान्य पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग के अधिकारियों/कर्मचारियों ने जो पीड़ा, यातना एवं अपमान बर्दाशत किया वह उनके एवं उनके परिवार के लिये अपूर्णनीय क्षति है। इन नियमों की विसंगतियों पर शासन का ध्यान आकर्षित किए जाने के बावजूद कभी भी शासन द्वारा बहुसंख्यक वर्ग के पक्ष एवं न्यायपूर्ण अनुरोधों पर ध्यान दिये जाने की बजाय उच्च न्यायालय से नियमों का असैवंधानिक ठहराये जाने के बावजूद भी शासन न्याय के हित में कार्य न करते हुये एक वर्ग विशेष के पक्ष में शासन, उच्चतम न्यायालय चला गया, जबकि सभी यह जानते हैं कि वहाँ भी इन नियमों के असंवैधानिक होने के कारण इन्हें अमान्य किया जाना है।

शासन के इस पक्षपातपूर्ण रवैये और हठ के कारण ही शांतिप्रिय बहुसंख्यक वर्ग अब उत्तेजित है एवं प्रदेश भर में विरोध की एक स्पष्ट लहर चलने लगी है, जो विभिन्न जिलों में विरोध स्वरूप रैलियों व अन्य गतिविधियों से स्वतः स्पष्ट है। इन गतिविधियों में निरंतर बढ़ोत्तरी हो रही है।

म0प्र0 जैसे शांतिप्रिय प्रदेश में शासन के इस कदम से ‘‘वर्ग संघर्ष’’ की स्थिति निर्मित हो गयी है। बहुसंख्यक मध्यम वर्ग स्वयं को छला महसूस कर रहा है एवं विभिन्न सामाजिक संगठन अब खुलकर शासन के निर्णय के विरोध में मुखर हो रहे हैं। जबकि आरक्षित अनुसूचित जाति/ जनजाति वर्ग उन मांगों को लेकर आंदोलित है जिनका कोई संवैधानिक आधार ही नहीं है।  

आरक्षण की वर्तमान व्यवस्था से मात्र कुछ प्रतिशत अनु. जाति/ जनजाति वर्ग के लोग ही लाभांवित हो रहे हैं और वे ही पीढ़ीओं से अपने कल्याण में लगे हैं, जबकि इसी वर्ग के बहुसंख्यक लोग इस व्यवस्था से कोई भी लाभ नहीं ले पा रहे हैं। शासन द्वारा बिना जानकारी/ आधारों के पदोन्नति में आरक्षण जारी रखे जाने की अन्याय पूर्ण गतिविधि से वंचित/ शोषित वर्ग को वास्तव में कोई लाभ नहीं हो रहा है। इनकी आर्थिक/ सामाजिक उन्नति के लिये कारगर अन्य उपायों पर अमल आवश्यक है न कि ऐसी कार्यवाहियाँ जो इसी वर्ग में एक नया उच्च वर्ग खड़ा कर रही हों।

वास्तव में हम न तो आरक्षण के विरोधी है, न गरीबों/ शोषितों के उत्थान के। संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत न्यायपूर्ण कार्यवाहियों का संस्था समर्थन करती है। हमारी अपेक्षा है कि शासन प्रदेश के सभी 7.00 लाख से अधिक अधिकारियों/कर्मचारियों से समानता की भावना से व्यवहार करे एवं तुष्टिकरण की नीति छोड़े, तभी प्रदेश का सबकी भागीदारी से चहुमुखी विकास संभव है।

सरकार को उक्त न्यायसंगत कार्यवाही करने की शक्ति प्रदान करने हेतु सपाक्स द्वारा दिनांक 11 जून 2016 को प्रातः 10.00 बजे से गुजराती समाज भवन लिंक रोड क्र.-1 भोपाल में ‘‘सद्बुद्धि महायज्ञ’’ आयोजित किया गया है जिसमें प्रदेश भर से संस्था के नोडल अधिकारी एवं जिला कार्यकारिणी के सदस्यों के साथ-साथ समाजिक संगठनों के प्रतिनिधि भी शामिल होगें। महायज्ञ के उपरांत सपाक्स का प्राँतीय अधिवेशन होगा जिसमें आगे की रणनीति पर चर्चा की जावेगी।
  • लेखक मप्र शासन का कर्मचारी एवं सपाक्स का पदाधिकारी है। 

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