
ऐसा न होने से सरकार की आय भी कम होती है और ऐसे विभाग भ्रष्टाचार के जाल में भी फंस जाते हैं। भारत में 5.43 करोड़ लोग आयकर देते हैं, जो कि भारत की कुल आबादी का सिर्फ चार प्रतिशत है। इससे यह निष्कर्ष तो नहीं निकाला जा सकता कि भारत में सिर्फ इतने ही लोगों की आय इतनी है कि वे आयकर चुकाएं। इसका अर्थ यह है कि देश में जिन लोगों को आयकर चुकाना चाहिए, उनमें से ज्यादातर यह कर नहीं चुकाते। किसी भी अच्छी अर्थव्यवस्था में प्रत्यक्ष करों का योगदान अप्रत्यक्ष करों से ज्यादा होना चाहिए। प्रत्यक्ष कर किसी की आमदनी पर लगता है और इसे आमदनी के मुताबिक तय किया जा सकता है।
अप्रत्यक्ष कर चीजों पर लगते हैं और उनका बोझ हर किसी को उठाना पड़ता है, भले ही उसकी आय जो भी हो। साथ ही इसका अर्थव्यवस्था और विकास पर विपरीत असर पड़ता है, क्योंकि इससे वस्तुएं और सेवाएं महंगी हो जाती हैं। भारत में सरकारें प्रत्यक्ष कर का दायरा बढ़ाने की बजाय अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए अप्रत्यक्ष करों का बोझ बढ़ाने का सीधा-सरल रास्ता अपनाती रही हैं, जिससे बड़ी संख्या में लोगों की आमदनी, करों के दायरे से बाहर है और इससे काले धन व भ्रष्टाचार की अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलता है।
प्रधानमंत्री ने आयकर विभाग के सामने आयकरदाताओं की संख्या दस करोड़ करने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को अगर पाना है, तो भारत में आयकर वसूलने के समूचे तंत्र में बहुत बडे़ बदलाव करने पड़ेंगे। ये बदलाव वक्त की जरूरत हैं, क्योंकि सिर्फ चार प्रतिशत आयकरदाताओं के रहते भारत का एक आधुनिक और तेजी से लगातार विकास करने वाली अर्थव्यवस्था बनना मुश्किल है। इसके लिए लोगों के मन से आयकर विभाग का डर निकालना सबसे जरूरी है और साथ ही आयकर चुकाने की प्रक्रियाओं को भी सरल बनाना होगा।आयकर विभाग को कानून लागू करने वाले विभाग की बजाय सेवा क्षेत्र के विभाग की तरह बनाया जाना चाहिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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