हाईकोर्ट में अध्यापक को शासकीय सेवक मानने से इंकार कर दिया

जबलपुर। मप्र शासन के संचालक लोक शिक्षण ने हाईकोर्ट में एक अध्यापक का अध्यापक मानने से ही इंकार कर दिया, जबकि याचिका में अध्यापक के तमाम दस्तावेज पहले से ही संलग्न थे। मामला महिला अध्यापक की मृत्यु के बाद उसकी उत्तराधिकारी बेटी को मिलने वाले अनुकंपा लाभ का है। 

न्यायमूर्ति नंदिता दुबे की एकलपीठ में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता अमरपाटन सतना निवासी दर्शिता चतुर्वेदी की ओर से अधिवक्ता श्रीमती सुधा गौतम ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता की माता अध्यापक संवर्ग अंतर्गत कार्यरत थीं। 2012 में उनका निधन हो गया। लिहाजा, परिवार की जिम्मेदारी बेटी दर्शिता के ऊपर आ गई। चूंकि वह बीई की पढ़ाई कर रही है, अतः उसने अनुकंपा नियुक्ति के स्थान पर प्रावधान के तहत 5 साल के वार्षिक वेतन की मांग के साथ आवेदन किया लेकिन विभाग ने आवेदन यह तर्क देकर ठुकरा दिया कि उसकी मां नियमित शासकीय सेवक नहीं थी, वह अध्यापक संवर्ग में नहीं थी। ऐसे में उसे 5 साल का वार्षिक वेतन नहीं मिल सकता।

बहस के दौरान दलील दी गई कि विभाग का जवाब झूठा है। ऐसा इसलिए क्योंकि याचिका के साथ जो दस्तावेज संलग्न किए गए, उनसे साफ है कि याचिकाकर्ता की मां अध्यापक संवर्ग के तहत 3 साल से सेवा देती चली आ रही थी। इसलिए वह सभी लाभों की हकदार है। हाईकोर्ट ने सभी बिन्दुओं पर गौर करने के बाद याचिका का दिशा-निर्देश के साथ निपटारा कर दिया।

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