मप्र वनविभाग में डबास का डर

भोपाल। मप्र वनविभाग में वरिष्ठ आईएफएस अफसर आजाद सिंह डबास का डर साफ दिखाई दे रहा है। तमाम अफसर डबास के खिलाफ कार्रवाई चाहते हैं, प्रस्ताव तैयार है परंतु अफसरों को डर है कि यदि डबास के खिलाफ कार्रवाई कर दी तो विभाग की परतें प्याज की तरह खुल जाएंगी। वो चाहते हैं कि कैसे भी हो डबास को हमेशा के लिए चुप करा दिया जाए। कार्रवाई का डर दिखाकर उनका मुंह बंद करा दिया जाए या फिर कुछ इस तरह की कार्रवाई की जाए कि डबास पूरे प्रदेश में बदनाम हो जाए और फिर डबास के डॉक्यूमेंट्स पर कोई विश्वास ही नहीं करे। 

वन विभाग में वैसे तो दागी अफसरों की संख्या दर्जन भर से भी ज्यादा है। इन अफसरों पर लाखों रुपए की रिश्वत मांगने, अनियमितता, भ्रष्टाचार, अवैध लकड़ी कटाई, जमीनों से जुड़े मामलों में गड़बड़ी जैसे आरोप हैं। अपरोक्ष रूप से पीसीसीएफ स्तर के अफसरों का संरक्षण प्राप्त है। इसके बाद भी आज तक कार्रवाई नहीं हो पाई है। 

इस बीच डबास ने सभी वरिष्ठ अफसरों को एक चार पेज का पत्र सौंपकर और सनसनी फैला दी। उन्होंने इसमें सीधे रूप से कहा कि बगैर मुझसे जानकारी लिए एक तरफा कार्रवाई करते हुए सभी गोपनीय प्रतिवेदनों को शून्य घोषित कर दिया गया। इससे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत की हत्या कर दी गई, यदि अक्षम, कामचोर भ्रष्ट अधिकारी इस तरह के हथकंडे अपनाकर बचाव करने में सफल हो जाते हैं तो यह वनों की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है।

तैयार है प्रस्ताव
डबास के इस पत्र के बाद मुख्य सचिव से लेकर प्रमुख सचिव व अन्य अफसरों के सामने इस बात को लेकर असमंजस है कि विभाग में यदि इतना कुछ हो रहा है तो पहले उक्त सभी पर कार्रवाई हो, इसके बाद ही डबास पर हो। सूत्रों ने बताया कि डबास पर कार्रवाई का प्रस्ताव तैयार हो गया है। पर निर्णय लेेने से पहले वरिष्ठ अफसर हिचकिचा रहे हैं। उनके सामने एक तर्क यह भी है कि डबास का कथन कहीं उचित तो नहीं है। डबास के पत्र से वन विभाग में सनसनी है और अफसर कुछ भी निर्णय लेने में संकुचा रहे हैं।

सुझाव को माना गया अनुशासनहीनता
डबास ने यह भी कहा कि चूंकि पीसीसीएफ हाफ सेवानिवृत्त हो रहे हैं, ऐसे में उन्होंने एक जिम्मेदार अफसर के नाते सुझाव दिया है किंतु उसे ही अनुशासनहीनता माना जा रहा है। यह भी लिखा कि उन्होंने एक संगठन के अध्यक्ष की हैसियत से यह पत्र लिखा है किंतु एक बड़ा तथ्य यह है कि अधिकारी लंबे अवकाश पर जाकर अवैध तरीके से एक दूसरे अधिकारी को पदोन्नति का फायदा दिलाते हैं। इससे शासन की गंभीर क्षति होती है। 

इस तरह का प्रश्न उठाकर उन्होंने कोई गलत नहीं किया, बल्कि आइना दिखाया है। विभाग में भाई भतीजावाद व आर्थिक लेनदेन जमकर चल रहा है। इसे कोई देखने वाला नहीं है। सिविल सर्विस डे पर इसी तरह का मामला उठाया था। नेक इरादे से भ्रष्टाचार के विरोध में उन्होंने पत्राचार किया है, इस पर कार्रवाई करना फ्रीडम आफ एक्सप्रेशन का गला घोटना है। डबास ने अपने पत्र में फिर लिखा है कि यदि मैं कहूं कि कर्म सत्याग्रही हूं तो अतिश्योक्ति नहीं है। बगैर किसी अवकाश के 14 से 16 घंटे कार्य करता हूं। 

यदि शासन को कार्रवाई करनी है तो मनरेगा की तरह जीते-जागते भ्रष्टाचार के स्मारक घूम रहे हैं। उनके खिलाफ होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि बगैर उनका पक्ष जाने किसी भी तरह की कार्रवाई होती है तो वह सरासर अन्याय एवं उत्पीडऩ की पराकाष्ठा होगी। वे 26 वर्ष से प्रताडि़त हो रहे हैं। ऐसे में सेवानिवृत्ति के पहले इस तरह से कुछ करना नाइंसाफी होगी।
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