
बेंच का यह निर्णय केेंद्रीय और राज्य सरकार के एससी-एसटी कर्मचारियों के परिसंघ के संस्थापक एस. करुपय्या की जनहित याचिका पर था। याची ने 18 जुलाई 2014 को याचिका दायर कर कोर्ट से आग्रह किया था कि वह 8 जनवरी 2002 के शासनादेश के आधार पर सरकार को उच्च स्तरीय समिति गठित करने का निर्देश दे ताकि एससी-एसटी के रिक्त पदों का निर्धारण किया जा सके।
समिति की रिपोर्ट के आधार पर सरकार उपयुक्त आदेश जारी करे। हाईकोर्ट ने जनहित याचिका पर कदम उठाने को कहा था। लेकिन कोई उपाय नहीं किए जाने की वजह से याची के वकील पी. विजेंद्रन ने पिछले साल जुलाई में मौजूदा अवमानना याचिका दायर की। फिर कोर्ट के आदेश को लागू करने के लिए कई बार मियाद बढ़ाई गई।
पिछली सुनवाई 18 मार्च को हुई और आदि द्रविड़ कल्याण विभाग ने 3 सप्ताह का और समय मांगा। विभाग द्वारा फिर मोहलत मांगने से हाईकोर्ट के जज ने निराशा जताते हुए कहा कि हम आपको और मोहलत नहीं दे सकते। इसके एवज में संबंधित अधिकारी जो जवाबी पक्ष में दूसरे क्रम पर हैं। अपनी निजी लागत पर मद्रास हाईकोर्ट के तमिलनाडु योग और सुलह केंद्र में 15 हजार रुपए जमा कराएं।