शिवराज के शिकार हुए नेता फिर लाइम लाइट में आएंगे

भोपाल। पिछले पांच-छह वर्षों में प्रदेश भाजपा की सक्रिय राजनीति से बाहर हुए सीनियर लीडर जल्द ही मुख्य धारा में नजर आएंगे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इसकी कवायद शुरू कर दी है। सुहास भगत के संगठन महामंत्री का पद संभालने के बाद बड़े नेताओं को फिर अहम जिम्मेदारी सौंपी जाएंगी।

इस समय ऐसे 6 प्रचारक और 18 नेता हैं जो या तो क्षेत्र या घर में सिमट गए हैं या फिर मप्र के बाहर बड़ा दायित्व संभालने के बाद भी प्रदेश में उनकी पूछ-परख नहीं हो रही। इन्हीं की नाराजगी अरविंद मेनन को संगठन महामंत्री पद से हटाने की बड़ी वजहों में से एक थी। प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान जल्द ही अपनी टीम का विस्तार करने वाले हैं। इसकी घोषणा से पहले सुहास भगत के जरिए संघ नंदकुमार की नई टीम पर भी पूरी नजर रखेगा कि काम करने वालों की अनदेखी न हो। प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे भी हस्तक्षेप कर सकते हैं। प्रदेश भाजपा के इतिहास में पहली बार ऐसा उलटफेर हुआ है जब किसी संगठन महामंत्री को हटाने का आदेश केंद्रीय कार्यालय प्रभारी की ओर से भेजा गया। आमतौर पर ऐसे निर्णय मौखिक ही हो जाते हैं।

इन्हे नहीं मिली तवज्जो
विदिशा से सांसद सुषमा स्वराज केंद्रीय विदेश मंत्री बनीं, नरेंद्र सिंह तोमर व थावरचंद गेहलोत भी केंद्रीय मंत्री बने। सुमित्रा महाजन को लोकसभा अध्यक्ष बनाया गया। प्रदेश भाजपा की ओर से कभी इन्हें कद के अनुसार तवज्जो नहीं मिली। कैलाश विजयवर्गीय राष्ट्रीय महासचिव बने तो पार्टी ने उनका स्वागत कार्यक्रम रखा। विजयवर्गीय को इंदौर से भीड़ लानी पड़ी। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष होने के बाद पंजाब-चंडीगढ़ के प्रभारी भी हैं, लेकिन संगठनात्मक बैठकों में उनका उपयोग नहीं होता। राष्ट्रीय सचिव ज्योति धुर्वे भी अलग-थलग हैं।

ये नेता सिमटकर रह गए
पूर्व केंद्रीय मंत्री विक्रम वर्मा को पत्नी नीना वर्मा की विधानसभा तक सीमित कर दिया गया। कैलाश जोशी घर बैठा दिए गए। गृहमंत्री बाबूलाल गौर की भी पूछ घट गई। केंद्रीय मंत्री उमा भारती, मणिपुर के प्रभारी व पूर्व केंद्रीय प्रहलाद पटेल और सांसद अनूप मिश्रा अपने क्षेत्रों में ही रह गए। हालांकि देश में इनकी पूछ बनी हुई है। राकेश सिंह को महाराष्ट्र का सह प्रभारी बनाया गया है, लेकिन वे भी प्रदेश की बैठकों दूर हैं। बताते हैं कि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सत्यनारायण जटिया और सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते ने तो बैठकों में राय देना ही बंद कर दिया है। हिम्मत कोठारी और ढाल सिंह बिसेन भी नाखुश हैं।

संघ प्रचारकों को भी किनारे किया था
मेनन से पहले संगठन महामंत्री पद पर रहे माखन सिंह, सह संगठन महामंत्री रहे भगवतशरण माथुर के दिल्ली जाने के बाद मप्र में उन्हें पार्टी कार्यालय में सिर्फ कमरा, स्टॉफ और गाड़ी देकर ही संतुष्ट कर दिया गया। निर्णायक बैठकों में जगह नहीं मिली। कभी कभार मंच पर जरूर बिठाया गया। इसी तरह 15 साल संगठन महामंत्री रहे कृष्ण मुरारी मोघे भी साल भर से उपेक्षित चल रहे हैं। कप्तान सिंह सोलंकी को हरियाणा-पंजाब का राज्यपाल बनाया गया, लेकिन प्रदेश पूछ-परख घट गई। राज्यपाल बनने से पहले तो बैठकों से भी दूर रहते थे। मेघराज जैन राज्यसभा सदस्य बना दिए गए। लेकिन संगठन की कार्यशैली की वजह से बमुश्किल ही पार्टी दफ्तर की तरफ रुख किया। ये सभी संघ के प्रचारक रह चुके हैं।

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