हाउसिंग सोसायटी फर्जीवाड़ा: अधिकारियों ने मंत्री को ही उलझा दिया

भोपाल। पिछले दिनों विधानसभा में गूंजे हाउसिंग सोसायटी फर्जीवाड़ा मामले में सहकारिता विभाग के अधिकारी बजाए न्यायोचित कार्रवाई का समर्थन करने के, माफिया को बचाने के लिए कानूनी दांवपैंच खेल रहे हैं। मंत्री गोपाल भार्गव चाहते हैं कि मामले की जांच एसटीएफ करे लेकिन अधिकारियों ने उन्हें ही उलझाकर रख दिया है। किसी भी तरह एसटीएफ की जांच शुरू होने से रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं। 

विधानसभा में मुकेश नायक ने रोहित गृह निर्माण समिति और अन्य विधायकों ने अपने क्षेत्रों की सहकारी गृह निर्माण समितियों में गड़बड़ियों के मामले उठाए थे। यहां विभाग की ओर से दिए गए जवाब में स्वीकार किया गया कि बरसों से ऑडिट ही नहीं हुआ। मूल सदस्यों को प्लॉट देने की जगह बंदरबांट हुई है। विपक्ष के दबाव में जांच नहीं कराने के तीखे आरोपों के चलते सहकारिता मंत्री ने एसटीएफ से जांच कराने की घोषणा कर दी।

उधर, विभाग अब जांच से पीछे हट रहा है। सूत्रों के मुताबिक यदि एसटीएफ जांच करती है तो अधिकारियों की जिम्मेदारी भी तय होगी, क्योंकि अधिनियम में उप पंजीयक से लेकर पंजीयक को सुनवाई कर कार्रवाई के अधिकार मिले हैं। कानून में गड़बड़ी करने वालों पर पांच लाख रुपए का जुर्माना और तीन साल की जेल देने तक का अधिकार तक उनके पास है, लेकिन इसका इस्तेमाल ही नहीं किया गया।

कई समितियों के मामले भी अधिकारियों के स्तर पर अटके हैं। यही कारण है कि विवादित हाउसिंग सोसायटी की जांच एसटीएफ को सौंपने की जगह सोसायटी अधिनियम का सहारा लिया जा रहा है। इस मामले में पंजीयक सहकारी सस्थाएं मनीष श्रीवास्तव का कहना है कि मुद्दे की गहराई से समीक्षा की जा रही है। हमारा मकसद सदस्यों को राहत पहुंचाना है। सहकारी अधिनियम में ऐसे मामले निपटाने के प्रावधान हैं। इनका इस्तेमाल करने के मैदानी अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं।

ऐसे निकाला रास्ता
सूत्रों के मुताबिक अधिकारियों ने एसटीएफ को जांच सौंपने संबंधी मंत्री की नोटशीट के जवाब में एक प्रतिवेदन भेजा और उसमें कानूनी प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि हम कार्रवाई कर रहे हैं। अगले तीन माह में हाउसिंग सोसायटी से जुड़े विवादों को हल करेंगे। ऐसे मामले जिनमें अधिकारियों को कार्रवाई के अधिकार हैं, उनमें बाकायदा न्यायिक आदेश जारी किए जाएंगे।

वहीं, ऐसे मामले जो कोर्ट में हैं और आवेदक को जरूरी दस्तावेज नहीं मिल रहे हैं वे उपलब्ध कराए जाएंगे। पात्र सदस्यों को समिति के पास जमीन होने पर प्लॉट दिलाने और जमीन नहीं होने पर ब्याज सहित राशि दिलवाई जाएगी। धोखाधड़ी करने वाले संचालक मंडलों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की कार्रवाई भी होगी।

हमारा उद्देश्य लोगों को हक दिलाना है
एसटीएफ से जांच कराने की बात से पीछे हटने का सवाल ही नहीं है। अधिकारियों ने एक मौका देने की बात रखी है। अधिनियम में सुनवाई की व्यवस्था है। यदि एकतरफा कार्रवाई हुई तो मामला कानूनी झंझटों में फंस जाएगा और सदस्यों को फायदा नहीं मिल पाएगा। हमारा उद्देश्य लोगों को उनका हक दिलाना है। यदि कुछ दिनों में नतीजे सामने नहीं आते तो एसटीएफ का विकल्प खुला है। 
गोपाल भार्गव, सहकारिता मंत्री

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