
‘मर कर भी तुझसे मुंह न मोड़ना’ जैसा दर्द-भरा वाक्य जब प्रत्यूषा के अंतिम वाट्सऐप मैसेज के रूप में आता है, तो इसके मायने हैं कि एक बहादुर किंतु अकेली होती युवती ने समाज के अमानवीय चेहरे और खोखले हो रहे नारी-पुरुष संबंधों पर गहरी चोट की है| सच्चे प्रेम का निर्वाह करने के लिए लगातार हिंसा सहने और फिर फांसी (या अपनी शादी की जिद के चलते हत्या) की हद तक गुजर जाने वाली यह हंसती-चहकती 24-वर्षीय लड़की उपभोक्तावादी संस्कृति के परवान चढ़कर क्या कहना चाहती थी?
अप्रैल 1993 में फिल्म अभिनेत्री दिव्या भारती, 1996 में तमिल सायरन सिल्क स्मिता, 2004 में 24-वर्षीय विडियो जॉकी और मॉडल पूर्व मिस इंडिया नफीसा जोसफ, 2006 में एक्टर कुलजीत रंधावा, 2010 में मॉडल विवेका बाबाजी और 2013 में अभिनेत्री जिया खान ने अपने कॅरियर के शीर्ष पर रहते हुए अपने को अवसाद की स्थिति में क्यों पाया? इसका जवाब यही हो सकता है कि पूंजी की दुनिया के चकाचौंध के भीतर का खोखलापन उनके भीतर के इंसान को खा रहाहै | इतना ही नहीं, यह कृत्रिम दुनिया छद्म रिश्ते, झूठे वायदे और परिवार-समाज से अलगाव, तथा पेशे में असफलताओं के दौर का पर्याय बन जाती है| जहाँ प्यार, आत्मीयता, इंसानियत और दोस्ती को खोजना कुछ इस तरह है, जैसे रेगिस्तान में पानी की तलाश|
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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