समग्र आईडी की अनिवार्यता और नोनिहालों का घटता नामांकन

मुश्ताक खान। दोस्तों आज बात करेंगे शासन द्वारा बुनियादी शिक्षा से जुड़ने वाले बच्चो हेतु समग्र आईडी की अनिवार्यता पर। विगत 3 वर्ष से स्कूल शिक्षा विभाग व शासन द्वारा समग्र आई डी को प्रत्येक विद्यार्थी के नामांकन हेतु अनिवार्य किया गया है जो की शहरी क्षेत्रो में नगर निगम एवं ग्रामीण क्षेत्रो में पंचायत द्वारा तेयार की जाती है शासन द्वारा उक्त योजना की किर्यान्वयन विद्यार्थियों की सही गणना व अन्य योजनाओं के लाभ देने हेतु किया गया है जो की एक उचित व्यवस्था है।

परन्तु इस योजना का प्रभाव विगत तीन वर्षो से एक ऐसे वर्ग विशेष पर पूर्ण रूप से पड़ रहा है जो टोले, मंजरो, मजदूर वर्गों, घुमक्कड़ प्रजातियों में आते है एवं इन वर्गों का एक बहुत बड़ा प्रतिशत स्कूल शिक्षा विभाग की कुछ आवश्यक कागजी खानापूर्ति हेतु प्रभावित हो रहा है और ये समस्या अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रो में दिखाई दे रही है जिसकी और शासन प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है और न ही आज तक ऐसी कोई गाइड लाइन शिक्षा विभाग की और से जारी नही की गई है की जिस बच्चे की समग्र आई डी नहीं है उसका नामांकन किया जाए अथवा नही? क्युकी सत्र प्रारम्भ होते ही विभाग द्वारा बच्चो की संख्यानुसार शाला प्रभारियो से दर्ज बच्चो की समग्र आई डी की मांग की जाती है एवं एक निश्चित सीमा में यदि आई डी प्राप्त न हो तो बच्चे को किसी तरह के लाभ नहीं मिल पाते और बच्चा समग्र आई डी की अनिवार्यता के कारण स्कूल में प्रवेश ही नही ले पाता क्युकी जैसा मेने पूर्व में बताया है की जिन बच्चो की समग्र आई डी नहीं है उनके सम्बन्ध में शाला प्रभारी को क्या कारवाही करनी है या बिना आई डी के बच्चो को भी प्रवेश देना है अथवा नहीं देना है या ऐसे समस्त परिवारों के बच्चो के बच्चो के नामांकन की क्या व्यवस्था होनी है जो हमेशा टोली मंजरो घुमक्कड़ और मजदूरी से एक स्थान से दुसरे स्थान पर घूम फिर कर अपना जीवन यापन करते है एवं ऐसे परिवारों के पास किसी तरह का वेध स्थानीयता का प्रमाण नहीं होता के सम्बन्ध में कोई दिशा निर्देश या कोई प्रथक से व्यवस्था नही की गई है।

अब ऐसे परिवारों की आई डी बिना किसी प्रमाणित साक्ष्य के न तो नगर निगम बनाता है और न ही पंचायत द्वारा बनाई जाती है और शाला प्रभारियो द्वारा छात्र हित में यदि कोई लिखा पड़ी की जाती है तो बिना किसी दस्तावेज के उपरोक्त कार्यालय आई डी जारी नही करते।

अब ऐसी स्थिति में ऐसे सभी शाला प्रभारी एक ऐसी स्थिति का सामना करते है जिसके तहत चाहते हुए भी वो ऐसे वर्गों के बच्चो को प्रवेश नही दे पाते और यदि किसी प्रभारी द्वारा ऐसे बच्चो को प्रवेश दे भी दिया जाता है तो न तो नगर निगम और न पंचायत और न ही विभाग कोई ऐसी व्यवस्था लागू नही करता जिसमे ऐसे परिवारों को जिनके पास कोई स्थाई प्रमाण पत्र नही है उनके लिए कोई कोड या कोई अस्थाई आई डी प्रदान करते दूसरी और प्रवेश होते ही कई योजनाओ हेतु विभाग समग्र आई डी की मांग करता है और यदि कोई प्रभारी शत प्रतिशत बच्चो की आई डी उपलब्ध नही करवा पाता तो उस प्रभारी के खिलाफ कारवाही सुनिश्चित की जाती है क्या ये उचित है? यदि यही व्यवस्था रही तो शिक्षको की मंशा होते हुए भी वो ऐसे किसी बच्चे को प्रवेश नही दे सकेंगे जिसके पास कोई स्थाई निवास या समग्र आई डी न हो अब ऐसे में सरकार की सब पढे़-सब बढे़ की योजना को केसे मूर्त रूप दिया जा सकता है और न ही 6 से 14 वर्ष के बच्चो को पूर्ण रूप से शिक्षा से जोड़ा जा सकता है क्युकी ऐसे घुमक्कड़ परिवारों को कोई भी वर्तमान सथानीय प्रशासन दस्तावेजो के कारण न तो समग्र आई डी प्रदान करती है न वनक वाले खाते खोलते न जाति प्रमाण पत्र बनते जो की नामांकन होते ही पालको से प्राप्त कर विभाग को प्रस्तुत किये जाने होते है।

दोस्तों यदि इसी तरह की व्यवस्था रही तो निश्चित ही सब पढे़ सब बढे़ के लक्ष्य को पूर्ण नहीं किया जा सकता अतः शिक्षा विभाग एवं प्रशासन हेतु कुछ सुझाव प्रस्तुत कर रहा हूँ जिस से प्रत्येक बच्चा स्कूल तक पहुचे चाहे वो किसी भी वर्ग का न हो चाहे वो अस्थाई निवासी क्यों न हो। कुछ सुझाव निम्न लिखित है--

1. समग्र आई डी आधार आई डी व बैंक खाता खोले जाने हेतु जिन प्रमाण पत्रों की मांग की जाती है उनको शिथिल करते हुए शाला के प्रभारी का आथोरिटी लेटर मान्य कर नगर निगम व पंचायत उपरोक्त आई डी व आधार व खाता खुलवाने व आई डी प्राप्त करने हेतु शासन व विभाग शाला प्रभारी को अधिकृत करे।

2. दूसरी व्यवस्था के तहत बी.आर.सी कार्यालय या संकुल स्तर पर संख्यानुसार कुछ अस्थाई समग्र आई डी नम्बर प्रदान करने की व्यवस्था की जाए जो ऐसे बच्चो के लिए प्राप्त की जाए जो आई डी की अनिवार्यता के चलते नामांकित नही हो सकते। इस व्यवस्था का लाभ बच्चे के शाला में नामांकित रहने तक दिया जाए व बच्चे के शाला त्यागने पर प्रभारी द्वारा उक्त आई डी नंबर सम्बंधित कार्यालय को सुचना देकर रद्द करवा दिया जाए।

3. यदि उपरोक्त व्यवस्था नही की जाती तो ऐसे घुम्मकड व मजदुर वर्ग के बच्चो की शिक्षा हेतु ऐसे समस्त दस्तावेज की अनिवार्यता समाप्त की जाए एवं शाला प्रभारी के अथोरिटी लेटर पर समस्त लाभ प्रदान किये जाए ताकि हर बच्चा स्कूल जाए। इस व्यवस्था के सुचारू संचालन हेतु विभाग द्वारा समस्त सम्बंधित कार्यालयों को पत्र के माध्यम से कारवाही सुनिश्चित करने हेतु निर्देशित किया जाए ताकि ऐसे बच्चो हेतु अस्थाई दस्तावेजी कारवाही सुनिश्चित की जा सके।

दोस्तों मेरे मत अनुसार शिक्षा ग्रहण करना हर उस बच्चे के लिए जरुरी है जो इस समाज का हिस्सा है यदि हम शिक्षा ग्रहण करने व करवाने हेतु कागजी दस्तावेजो की जंजीर इन नोनिहालो के पेरो में और इनके पालको के गले में डाल देंगे तो कई पालक कागजी दस्तावेजो के आभाव में अपने बच्चो को स्कूल भेजने से कतरायेंगे और कई ऐसे बच्चे जो आगे जाकर देश प्रदेश का गौरव बढाने हेतु अपनी प्रतिभा दिखा सके वो स्कूल तक ही नही आयेंगे अतः स्कूल शिक्षा विभाग व प्रशासन व शासन से एक शिक्षक होने के नाते हाथ जोड़कर निवेदन करता हूँ की आगामी सत्र से उपरोक्त व्यवस्थाओ में परिवर्तन कर शासन की योजना सब पढे़- सब बढे़ को सही रूप से अमली जामा पहनाया जा सके।

मुश्ताक खान
भोपाल
एक आम अध्यापक
मोबाइल नंबर-9179613685

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