बीमा कंपनियां * शर्तें लागू के नाम पर उल्लू नहीं बना सकतीं

भोपाल। बीमा कंपनियां छिपे हुए नियम और शर्तों के जरिए अब उपभोक्ताओं को चूना नहीं लगा सकेंगी। राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एससीडीआरसी) ने अपने एक फैसले में स्पष्ट किया है कि बीमा पॉलिसी दो पक्षों के बीच एक अनुबंध है। इसलिए ऐसी कोई भी शर्त व नियम क्लेम के वक्त लागू नहीं होगी, जो पॉलिसी में स्पष्ट रूप से दर्ज नहीं है।

एससीडीआरसी के जस्टिस राकेश सक्सेना और ज्यूडिशियल मेंबर नीरजा सिंह की जूरी ने ग्वालियर निवासी लवित सिंह की अपील मंजूर करते हुए बीमा विवादों के लिए यह नजीर दी है। आयोग ने माना है कि बीमा कंपनियों के प्रोस्पेक्टस पॉलिसी का पार्ट नहीं हैं। प्रोस्पेक्टस की भूमिका सिर्फ एक ब्रॉशर की तरह है। इसलिए बीमा कंपनियों को यह हक नहीं है कि क्लेम की राशि के भुगतान नहीं करने के लिए वह पॉलिसी पेपर के अतिरिक्त किसी ब्रॉशर या प्रोस्पेक्टस में दर्ज शर्तों का फायदा उठा सके।

2 लाख 85 हजार का मेडिक्लेम दिलाया
आयोग ने ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को आदेश दिया है कि वह पॉलिसीधारक लवित सिंह को 8 प्रतिशत की दर से ब्याज के साथ 2 लाख 85 हजार 427 रुपए बतौर मेडिक्लेम प्रदान करे। बीमा कंपनी को 18 दिसंबर 2008 से भुगतान करने की तारीख तक क्लेम की राशि पर ब्याज देना होना। इसके अलावा 3 हजार रुपए केस के खर्च के रूप में भी देना होगा।

ये है मामला
लवित सिंह ने ओरिएंटल इंश्योरेंश कंपनी से 2 जून 2008 से 1 जून 2009 की अवधि के लिए मेडिक्लेम बीमा पॉलिसी ली थी। इसका समइंश्योर्ड राशि 3 लाख रुपए और प्रीमियम राशि 8396 रुपए थी। इसी बीच लवित को भारी मोटापा (मॉर्बिड ओबेसिटी), लेप्रोस्कोपिक स्लीव गेस्ट्रेक्टोमी दोनों बीमारी एक साथ हो गईं। लवित सिंह का जयपुर के एक हॉस्पिटल में ऑपरेशन हुआ। इलाज पर 2 लाख 85 हजार 427 रुपए खर्च हुए। लवित ने बीमा कंपनी में क्लेम किया, लेकिन कंपनी ने क्लेम यह कहते हुुए खारिज कर दिया कि पॉलिसी के क्लॉज नंबर 4.19 के तहत यह बीमारी कवर नहीं होती है। लवित का कहना था कि उसे पॉलिसी लेते वक्त तो ऐसा कोई नियम नहीं बताया गया था। न ही पॉलिसी में बीमारियों को क्लासीफाई कर ऐसी कोई शर्त लिखकर दी गई। कंपनी ने दलील दी कि पॉलिसी लेने के बाद एक प्रोस्पेक्टस लवित को दिया गया था, जिसमें सभी नियम और शर्तें दी गई थीं। लवित ने इसे बीमा कंपनी द्वारा खुद के साथ धोखाधड़ी बताते हुुए ग्वालियर जिला उपभोक्ता फोरम में बीमित राशि दिलाने की गुहार लगाई। जिला उपभोक्ता फोरम ने 29 जून 2009 को बीमा कंपनी को सही करार देते हुए लवित की याचिका को खारिज कर दिया था। इसी के विरुद्ध राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में अपील की गई थी।

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