बिहार: शराब बेचने की असफलता के बाद पाबन्दी

राकेश दुबे@प्रतिदिन। बिहार में महज चार दिनों के अंदर पहले आंशिक शराबबंदी और फ़िर पूर्ण शराबबंदी की असली वजह क्या है? क्या यह बिहारवासियों के हित में है?, जैसा कि मुख्यमंत्री नितीश बाबु  ने मंत्रिपरिषद की कही? सर्वज्ञात है कि महागठबंधन सरकार के द्वारा सूबे में चरणबद्ध तरीके से शराबबंदी को लेकर सभी घटक दलों में आपसी सहमति थी। फ़िर इसी के आधार पर विधानमंडल के दोनों सदनों में बिहार उत्पाद विधेयक 2016 (संशोधन) सर्वसम्मति से पारित हुआ। राज्य सरकार ने इसे लागू करते हुए जहां एक ओर देशी शराब की बिक्री और सेवन पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया, तो वहीं दूसरी ओर उसने आईएमएफ़एल यानी देश में बनी विदेशी शराब की बिक्री के लिए अपनी ओर से दुकानें खोलने की कवायद शुरू की।

इस मामले में वरिष्ठ आईएएस पदाधिकारी के.के. पाठक की बड़ी भूमिका हैं, जो इन दिनों उत्पाद, राजस्व, निबंधन एवं मद्य निषेध विभाग की जिम्मेवारी संभाल रहे हैं। बिहार के सियासी गलियारे में ''सनकी'' के नाम से मशहूर पाठक को नीतीश कुमार ने खासतौर पर केवल इसी उद्देश्य के लिए तैनात किया है, लेकिन वे भूल गए कि सरकारी तंत्र के काम करने का तरीका अलग होता है।विभाग के द्वारा सरकारी विदेशी दुकानें खोलने की प्रक्रिया शुरू हुई। पहले तो राज्य सरकार ने सूबे के बेरोजगारों को इसके लिए नियोजित करना चाहा। विज्ञापन निकाले गए, लेकिन बेरोजगार युवाओं ने बेरोजगारी तो स्वीकार कर ली, परंतु शराब बेचने वाला बनने से इन्कार कर दिया। विभाग के सामने बड़ा संकट आ गया। 

आनन-फ़ानन में के.के. पाठक ने मुख्यमंत्री को सलाह दी कि इस काम के लिए रिटायर्ड सरकारी कर्मियों को तैनात किया जाय। मुख्यमंत्री ने हामी भर दी, यह फॉर्मूला भी बेकार चला गया। वैसे भी जिन बाबूओं ने इज्जत के साथ उम्र भर सरकारी खजाने को लूटा हो, उनके लिए दारू बेचवा कहलवाने की मजबूरी क्यों हो सकती है, इसका आकलन आसानी से किया जा सकता है। परिणाम यह हुआ कि राज्य सरकार सूबे में सरकारी दुकानों की व्यवस्था करने में नाकाम रही। कुछेक जगहों पर दुकानें खुलीं भी तो लोगों ने दो तरह का विरोध किया।सही मायनों में देखा जाए तो, बिहार के लिए सकारात्मक यह है कि यहां के लोगों ने शराबबंदी करने का फ़ैसला ले लिया है। इस बात का उल्लेख मुख्यमंत्री ने भी किया है, इसलिए जब दुकानें खुलीं तो लोगों ने विरोध किया। वहीं दूसरी ओर अनुभवहीन नये कलालों (शराब बेचने वालों) द्वारा विदेशी शराब के लिए लंबी-लंबी पंक्तियों में खड़े लोगों को संभालना मुश्किल हो गया। परिणामस्वरुप कई जगहों पर हिंसक वारदातें हुईं।

इन सब तथ्यों से अलग सबसे बड़ा राज राजनीतिक है, जिन्हें बिहार की राजनीति की गहरी समझ है, वे इस बात को जानते हैं कि नीतीश कुमार को महान बनने की बड़ी ललक है। इसी ललक के कारण वे श्रेय साझा नहीं करना चाहते हैं। प्रमाण आजकल अखबारों में बिहार सरकार के उत्पाद, राजस्व एवं मद्य निषेध विभाग द्वारा शराबबंदी के संबंध में प्रकाशित कराये गए विज्ञापन हैं। सभी विज्ञापनों में नीतीश कुमार ने अपनी तस्वीर तो छपवाई |अब उनके सहयोगी ताड़ी की बिक्री के लिए जोर लगा रहे हैं |
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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