मप्र में 4000 करोड़ का बिजली घोटाला: हाईकोर्ट ने याचिका लौटाई

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जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अपनी एक अहम टिप्पणी में कहा कि हर मर्ज की दवा हाईकोर्ट को समझने की भूल न की जाए। यदि किसी तरह के भ्रष्टाचार आदि की शिकायतें हैं तो पहले चरण में उनकी शिकायत सक्षम फोरम में की जाए। जब वहां से इंसाफ न मिले तो दूसरे चरण में समुचित तथ्यों के साथ हाईकोर्ट की शरण ली जाए।

प्रशासनिक न्यायमूर्ति राजेन्द्र मेनन व जस्टिस अनुराग कुमार श्रीवास्तव की डिवीजन बेंच उक्त टिप्पणी के अलावा महत्वपूर्ण निर्देश के साथ मध्यप्रदेश के बिजली विभाग व अमरकंटक की लैंको पॉवर कंपनी के बीच बिजली सप्लाई अनुबंध के विवाद संबंधी जनहित याचिका का निपटारा कर दिया। इसके तहत जनहित याचिकाकर्ता को लोकायुक्त या ईओडब्ल्यू के समक्ष विधिवत शिकायत दर्ज कराने स्वतंत्र कर दिया गया है। मामला सांठगांठ के जरिए राज्य शासन को 400 करोड़ रुपए मासिक के हिसाब से अब तक कुल 4 हजार 143 करोड़ रुपए की क्षति पहुंचाए जाने के आरोप से संबंधित था। हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान जनहित याचिकाकर्ता नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के प्रांताध्यक्ष डॉ.पीजी नाजपांडे की ओर से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने पक्ष रखा।

अनुबंध मनमाने व अनुशासनहीन तरीके से बीच में तोड़ा
उन्होंने दलील दी कि 2005 में बिजली विभाग ने अमरकंटक की लैंको पॉवर कंपनी के साथ बिजली सप्लाई का अनुबंध किया। इसके तहत 1 रुपए 20 पैसे प्रति यूनिट बिजली सप्लाई होनी थी। एक साल सब कुछ ठीक चलने के बाद लैंको ने रेट बढ़ाने को लेकर दबाव बनाना शुरू कर दिया। चूंकि मध्यप्रदेश राज्य विद्युत नियामक आयोग रेट फिक्स कर चुका था, अतः उसकी मंशा पूरी नहीं हुई। इस पर लैंको ने बिजली विभाग के साथ किया गया अनुबंध मनमाने व अनुशासनहीन तरीके से बीच में ही तोड़ दिया।

ब्लैकलिस्टेड के साथ दोबारा कैसे हुआ अनुबंध
बहस के दौरान दलील दी गई कि लैंको की अनुशासनहीनता को आड़े हाथों लेते हुए बिजली विभाग ने उसे भविष्य के लिए ब्लैकलिस्टेड कर दिया। यही नहीं मामला हाईकोर्ट चला आया। यहां सुनवाई के दौरान बीच में राजीनामा होने की जानकारी पेश कर दी गई। जिसे रिकॉर्ड पर लेकर हाईकोर्ट ने याचिका का निपटारा कर दिया। कुछ समय बाद चौंकाने वाली जानकारी सामने आई कि बिजली विभाग ने उसी ब्लैकलिस्टेड लैंको कंपनी के साथ दोबारा अनुबंध कर लिया है। इस बार प्रति यूनिट 1 रुपए 95 पैसे दिए जा रहे हैं। इसका सीधा अर्थ है कि अधिकारियों की कंपनी के साथ मिलीभगत से सरकार को चूना लगाया जा रहा है। बढ़ी हुई राशि के कारण राज्य शासन को मासिक रूप से लगभग 400 करोड़ का नुकसान हो रहा है। लिहाजा, उच्चस्तरीय जांच कराई जाए। इसके जरिए दोषी अधिकारियों की करतूत सामने आ जाएगी।
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