
बाजीगर 38 वसंत देख चुके हैं। उम्र के इस मोड़ पर कैसे आया फिर से कापी पेन उठाने का खयाल? सवाल पूछा तो विधायक बाजीगर ने उल्टा सवाल दाग दिया-पढ़ने लिखने की कोई उम्र होती है क्या। और कुरेदा तो बोले- दरअसल अनपढ़ आदमी की कहीं कोई कद्र नहीं है। राजनीति में तो बिल्कुल नहीं। पहले कभी होती रही होगी। आज तो अनपढ़ को सियासत में कोई भाव नहीं देता। फिर रोज नयी नयी योजनाएं। नयी नयी बातें। खुद की समझ में आएंगी तभी तो लोगों को बता पाएंगे। मजे की बात यह है कि बाजीगर के बड़े बेटे साहिब सिंह ने भी इसी साल सीबीएसई की बारहवीं की परीक्षा दी है। छोटे बेटे ने दसवीं के पेपर दिए हैं।
लैपटाप ने बदली सोच
विधायक बाजीगर बताते हैं कि सरकार बनते ही विधायकों को लैपटाप दिये गये थे। मुझे भी मिला था पर चलाना नहीं आता था। सीखना शुरू किया तो कुछ ही दिनों में उंगलियां की बोर्ड की अभ्यस्त हो गयी। फेसबुक चलाना आ गया। इंटरनेट इस्तेमाल करना आ गया। फिर सोचा कि जब इस उम्र में कंप्यूटर चलाना आ सकता है तो आगे की पढ़ाई क्यों नहीं हो सकती। कुलवंत बाजीगर बताते हैं कि इसी प्रेरणा के चलते ओपन स्कूल से प्लस टू के फार्म भर दिये।
मां ने कहा था वकील बनेगा
विधायक कुलवंत बाजीगर बताते हैं कि बचपन से ही तर्क शक्ति तेज थी। इसलिए मां अक्सर कहा करती थी कि मुंडा साड्डा वकील बनूंगा। पर किस्मत में चूंकि संघर्ष ही संघर्ष लिखा था इसलिए एक बार ऐसे बीमार पड़े कि स्कूल की पढ़ाई बीच में छूट गयी। घर के हालात अच्छे नहीं थे इसलिए गाड़ियों पर ड्राइवर की नौकरी करनी पड़ी। उसी दौरान ओपन स्कूल से दसवीं की परीक्षा पास कर ली। विधायक कहते हैं कि प्लस टू के बाद बीए करूंगा और बीए के बाद एलएलबी।