राकेश दुबे@प्रतिदिन। श्री अरुण जेटली द्वारा प्रस्तुत इस बजट में आंकड़ों की बाजीगरी जमकर की गई है| वित्त मंत्री ने दावा किया कि इस बार मनरेगा में सर्वाधिक 38,000 करोड़ रुपये दिए गए हैं, जो तथ्यों से सरासर परे है| वर्ष 2013-14 में इस मद पर 38,500 करोड़ रुपये खर्च किये गए थे| दूसरी बात यह है कि सूखे और खेती पर व्याप्त संकट के कारण चालू वित्त वर्ष में 21 राज्य मनरेगा पर तय रकम से ज्यादा पैसा खर्च कर चुके हैं, और अब खर्च की गई राशि (6,500 करोड़ रुपये) केंद्र से मांग रहे हैं| उनकी मांग पूरी करने के बाद इस मद में केवल 31,500 करोड़ रुपये ही बचेंगे| सब जानते हैं कि सूखा प्रभावित इलाकों से किसानों और मजदूरों का पलायन रोकने का सबसे कारगर उपाय रोजगार गारंटी स्कीम है| गत सितम्बर माह में केंद्र सरकार ने सूखाग्रस्त इलाकों में इस योजना के कार्यदिवस 100 से बढ़ाकर 150 कर दिए थे. पर आदेश केवल कागजों में हुआ, हकीकत में सौ दिन काम भी केवल 4.8 फीसदी लोगों को मिल पाया है| उत्तर प्रदेश में दो प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 3.7 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 4.6 प्रतिशत, ओडिशा में 4.6 प्रतिशत, कर्नाटक में 5.5 प्रतिशत, तेलंगाना में 7.3 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश में आठ प्रतिशत, झारखंड में 8.2 प्रतिशत तथा महाराष्ट्र में 12.2 प्रतिशत लोगों को पूरे सौ दिन काम दिया गया|
धन के अभाव में राज्य सरकारों के हाथ बंधे हुए हैं| सूखा प्रभावित दस राज्यों ने राहत के लिए केंद्र से कुल 38,000 करोड़ रुपये मांगे थे, जबकि अब तक वित्त मंत्रालय ने आठ सूबों के लिए 9,482 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं| 27 जनवरी तक उसने केवल 2,386 करोड़ रुपये जारी किए थे| कृषि मंत्रालय के बजट में भारी वृद्धि का दावा किया जा रहा है| वर्ष 2015-16 में मंत्रालय का बजट 22,958 करोड़ रुपये था, जो वर्ष 2016-17 के लिए 44,485 करोड़ रुपये कर दिया गया है. यहां भी हेरा-फेरी साफ पकड़ में आती है|किसानों के कर्ज पर दी जा रही सब्सिडी का भार अब तक वित्त मंत्रालय वहन करता था| आगामी वित्त वर्ष में इसके लिए 15,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है और यह पैसा कृषि मंत्रालय को हस्तांतरित कर दिया गया है| बड़े-बड़े उद्योगों का करोड़ों रुपये का कर्जा चुपचाप रिस्ट्रक्चर कर देने वाले बैंकों ने भी किसानों के प्रति बेरूखी का रवैया अपना रखा है| अनुमान है कि किसानों पर छह खरब रुपये का फसल ऋण बकाया है, जिसकी तुलना में गत 31 दिसम्बर तक पांच हजार करोड़ से भी कम का कर्जा रिस्ट्रक्चर किया गया| यह छूट ऊंट के मुंह में जीरे के समान है| साफ समझ में आने वाली बात को भी जेटली ने जादूगरी से गायब कर दिया है |
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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