राकेश दुबे@प्रतिदिन। 9/11 के पहले तक विश्व में आतंकवाद को खाद-पानी देने वाले अमेरिका तक को भारत की यह दलील नागवार गुजरती थी कि आने वाले समय में आतंकवाद का मकड़जाल किस तरह पूरी दुनिया को उलझा कर रख देगा। जबकि भारत हमेशा आतंकवाद और उसके पैरोकार, उसे प्रश्रय देने वाले देशों के बारे में अमेरिका समेत ‘इलिट’ राष्ट्रों को यह समझता रहा कि इसके खतरे कितने भयावह और दर्दनाक होने वाले हैं।
अब लाखों-करोड़ों लोगों का खून बहने के बाद, काफी जद्दोजहद के बाद दुनिया समझ गई है कि भारत का कहना कितना तार्किक और सही था? प्रधानमंत्री मोदी तीन देशों की यात्रा में उनका मुख्य एजेंडा आतंकवाद है. जिस तरह से आतंकवाद की बेल भारत, खाड़ी देश, अफ्रीका, अमेरिका होते हुए यूरोप को लपेट रही है, उससे एक बात को साफ है कि आतंकवाद के फन को कुचलने में अब स्वार्थी होना कितना जोखिम भरा और घातक होगा. मोदी की मंशा, दरअसल इसी बिंदु पर आम सहमति बनाने की है।
जब तक सभी राष्ट्र इस धारणा के साथ आतंकवाद को खत्म करने के मंच से खुद को अलग रखेंगे, तब तक लोगों की जान जाती रहेगी. यही वजह है कि मोदी ने अपनी तीन देशों की यात्रा की शुरुआत बेल्जियम से की, जहां की राजधानी में एक दिन पहले आतंकियों ने कत्लेआम मचाया था| इससे पहले, संयुक्त राष्ट्र संघ में भी मोदी के आतंकवाद पर दिए भाषण ने विश्व को यह सोचने को मजबूर किया था कि आतंकवाद का दबदबा किस तरह दुनिया को, लोकतंत्र को तहस-नहस करने पर आमादा है. ब्रुसेल्स की यात्रा का एक सांकेतिक अर्थ भी मोदी को देना था कि, भारत हमेशा से आतंकवाद पीड़ित मुल्क के साथ खड़ा एक वक्त ऐसा भी था, जब भारत की चिंताओं से विश्व बिरादरी आंखें मूंद लेती थी. किंतु समय बलवान होता है|
अब हर देश की चिंता के मूल में आतंकवाद है| वाशिंगटन के दो दिन के दौरे में भारत की कोशिश यही होनी चाहिए कि वह आतंकवाद के समूल नाश के लिए अमेरिका को युक्तिसंगत तरीके से अपने पाले में लाए और पाकिस्तान पर इस बात के लिए दबाव बनाए कि वह अपने यहां शरण लिये आतंकियों को सलाखों के पीछे पहुंचाए. हालांकि, यह काम उतना आसान नहीं है, मगर विश्व बिरादरी को सीख देने लायक संदेश तो जाएगा।
वैसे, इस चरम समस्या पर जिस तरह से फ्रांस, रूस और बाकी देश की सकारात्मक सोच बन रही है, वह निसंदेह सुकूनदेह है. इस कवायद से इस बात को भी बल मिला है कि आतंकवाद सिर्फ जान नहीं लेता है, वरन विकास की रफ्तार को भी इस कदर धुंधला देता है कि यह पता ही नहीं रहता जाना किधर है?
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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