राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत में स्वतंत्रता का अर्थ हो गया है अराजकता और उच्छृंखलता। क्या इसका संज्ञान प्रशासन और राज्य को नहीं लेना चाहिए? जब वोट ही सब कुछ निर्धारित करता है तो बाकी बातों पर ध्यान कौन दे। नागरिक जीवन की गुणवत्ता की बात चलते ही हमें गरीबी दिखने लगती है, आबादी का घनत्व दिखने लगता है। तब हम अपने पड़ोसी चीन को नहीं देखते। वहां की आबादी हमसे ज्यादा है, फिर भी वह हमसे अधिक विकसित देश है और वहां का जीवन-स्तर हमसे कई गुना बेहतर है। जबकि आजादी के समय वह हमसे ज्यादा गरीब था। हमारे देश में जन-परक सोच कतई नहीं है। सब कुछ नेताओं के स्वार्थों से नियोजित और संचालित होता है। गौरतलब है कि अनियोजित शहरीकरण और औद्योगीकरण से भारत की वायु गुणवत्ता में अत्यधिक कमी आई है।
विश्व भर में तीस लाख मौतें, घर और बाहर के वायु प्रदूषण से प्रतिवर्ष होती हैं, इनमें से सबसे ज्यादा भारत में होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत की राजधानी दिल्ली, विश्व के दस सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में एक है। सर्वेक्षण बताते हैं कि वायु प्रदूषण से देश में, प्रतिवर्ष होने वाली मौतों के औसत से, दिल्ली में बारह प्रतिशत अधिक मृत्यु होती है। दिल्ली ने वायु प्रदूषण के मामले में चीन की राजधानी बेजिंग को काफी पीछे छोड़ दिया है। येल विश्वविद्यालय के अध्ययन के मुताबिक, 2.5 माइक्रान व्यास से छोटे कण मनुष्यों के फेफड़ों और रक्त ऊतकों में आसानी से जमा हो जाते हैं, जिसके कारण हृदयाघात से लेकर फेफड़ों का कैंसर तक होने का खतरा होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, प्रतिदिन 25 माइक्रोग्राम कण प्रति घन मीटर तक की मात्रा स्वास्थ्य के लिए घातक नहीं है। लेकिन पिछले वर्ष जनवरी के पहले तीन सप्ताह में नई दिल्ली के पंजाबी बाग में प्रदूषण की औसत रीडिंग 473 पीएम-25 थी, जबकि बेजिंग में यह 227 थी। हालांकि दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का कहना है कि मौजूदा वायु प्रदूषण के पीछे मौसम प्रमुख कारण है और सालाना औसत के लिहाज से दिल्ली अब भी बेजिंग से पीछे है। लेकिन ताजा ‘एनवॉयरमेंट परफार्मेंस इंडेक्स’ (ईपीआई) में 178 देशों में भारत का स्थान 32 अंक गिर कर 155वां हो गया है। वायु प्रदूषण के मामले में भारत की स्थिति ब्रिक्स देशों (चीन, ब्राजील, रूस और दक्षिण अफ्रीका) में सबसे खस्ताहाल है।
सूचकांक में सबसे ऊपर स्विट्जरलैंड है। प्रदूषण के मामले में भारत की अपेक्षा पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और चीन की स्थिति बेहतर है, जिनका इस सूचकांक में स्थान क्रमश: 148वां, 139वां, 69वां और 118वां है। इस सूचकांक को नौ कारकों- स्वास्थ्य पर प्रभाव, वायु प्रदूषण, पेयजल एवं स्वच्छता, जल संसाधन, कृषि, मछली पालन, जंगल, जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा- के आधार पर तैयार किया गया है।
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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