राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत के कई कानूनविद्, विद्वान और सामाजिक कार्यकर्ता इस बात को बार-बार कहते रहे हैं कि भारतीय दंड विधान की धारा-377 को बदला जाना चाहिए, जिसमें पति-पत्नी के बीच सहवास को सिर्फ इस आधार पर गैर-कानूनी करार दिया जा सकता है कि पत्नी की उम्र 15 वर्ष से कम हो। इस धारा के मुताबिक, सिर्फ अपवाद के अलावा पति-पत्नी के बीच सहवास को बलात्कार नहीं करार दिया जा सकता, भले ही वह सहवास पत्नी की सहमति से हुआ हो या नहीं। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई एक रिपोर्ट में भी वैवाहिक बलात्कार को अपराध ठहराने की सिफारिश की गई है। इसके बावजूद चाहे पिछली संप्रग सरकार हो या मौजूदा राजग सरकार, इस मामले में हाथ डालने से बचती रही हैं। यह मुमकिन है कि दोनों ही सरकारों में ऐसे प्रगतिशील और उदार लोगों की अच्छी-खासी संख्या हो, जो इस प्रस्ताव के समर्थन में हों, लेकिन शायद वे धार्मिक नेताओं और समाज के पुरातनपंथी समूहों के विरोध से बचना चाहते हैं। इस वक्त दुनिया के बहुसंख्य देशों में वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ किसी-न-किसी किस्म का कानूनी सहारा जरूर है। जिन देशों में वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ कोई कानून नहीं है, उनमें से कम ही देश प्रगतिशील या कायदे के लोकतांत्रिक देश कहे जा सकते हैं।
ऐसा नहीं है कि बाकी दुनिया में भी वैवाहिक बलात्कार की धारणा बहुत पुरानी है। यह धारणा 20वीं सदी में लोकतांत्रिक मूल्यों और महिला अधिकारों के आंदोलन के मजबूत होने के दौर में ही आई कि विवाह होने के बावजूद भी स्त्री की इच्छा के खिलाफ सहवास करना उसके स्वाभाविक मानवीय अधिकार का हनन है। इसके बारे में कानून ज्यादातर देशों में 20वीं सदी के अंत में बने। ये ऐसे मूल्य हैं, जो समाज के विकास के साथ विकसित हुए हैं, इसलिए समाज के कुछ पुरातनपंथी लोगों द्वारा उनका विरोध होना स्वाभाविक भी है। भारत में ही कितने सारे प्रगतिशील कदमों या कानूनों का विरोध हुआ है, चाहे वह जाति-प्रथा का विरोध हो या हिंदू विवाह कानून हो। इन सभी कदमों का विरोध इसी आधार पर हुआ कि इनसे समाज टूट जाएगा या धर्म भ्रष्ट हो जाएगा। भारतीय समाज तमाम प्रगतिशील कदमों के बावजूद न टूटा है, और न यहां धर्म भ्रष्ट हुआ है। यह बदलाव के प्रहर हैं, प्रवाह की दिशा नियत नहीं है | ऐसे में संतुलन और सामंजस्य ही विकल्प है, एक बार भारतीय समाज की दिशा गलत हो गई तो सदियों से बनी साख साफ हो जाएगी |
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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