देशव्यापी समस्या होती, परीक्षा में नकल

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राकेश दुबे@प्रतिदिन।  परीक्षा में नकल की समस्या नई नहीं है, बल्कि तीन-चार दशक पहले कुछ ज्यादा ही नकल होती थी, खासकर सत्तर और अस्सी के दशक शिक्षा में भारी अराजकता के दशक थे। उन दिनों कुछ राज्यों में परीक्षाओं का होना ही मुहाल था। ऐसा नहीं है कि अब शिक्षा तंत्र से यह बुराई खत्म हो गई है, लेकिन अब परंपरागत नकल से ज्यादा जोर व्यापम जैसे बड़े घोटालों का है, जिसमें प्रतियोगी परीक्षाओं में पास करवाने के लिए बड़े-बड़े गिरोह अनेक स्तरों पर सक्रिय रहते हैं। 

जाहिर है, व्यापम जैसी परीक्षाओं में सेना का तरीका आजमाना असंभव है और वह बेअसर भी रहेगा, क्योंकि उनमें घोटाला तो परीक्षा दे चुकने के बाद किया जाता है।स्कूलों, कॉलेजों की आम परीक्षाओं में पहले तो नकल कुटीर उद्योग के स्तर पर होती है, लेकिन प्रतियोगी परीक्षाओं में उसने आधुनिक तकनीक और अर्थतंत्र को अपना लिया है। शिक्षा के इस हद तक व्यवसायीकरण और अपराधीकरण होने से इसकी गरिमा किस हद तक कम हो गई है, की सेना की भर्ती परीक्षा में अंडरवियर पहने परीक्षार्थियों में दिखाई। सेना का तरीका आपत्तिजनक जरूर कहा जा सकता है, लेकिन हमारे समाज में परीक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता ही इस हद तक पहुंच गई है। एक बड़ी वजह यह भी है कि हमारी शिक्षा प्रणाली में परीक्षा पर ही सारा जोर रहता है, जबकि नकल का होना ही इसके अविश्वसनीय होने का प्रमाण है।

स्थिति के इस हद तक पहुंचने की वजह यह है कि शिक्षा कभी नीति-निर्माताओं की प्राथमिकता में नहीं रही और हर सरकार ने शिक्षा पर पैसा खर्च करने में कंजूसी की। इसका नतीजा यह हुआ कि सरकारी शिक्षा प्रणाली जर्जर हो गई, बेलगाम निजी शिक्षा संस्थान खडे़ हो गए और हमने ऐसी नई पीढ़ी तैयार कर ली, जो पढ़ने या काम करने की उम्र में है, लेकिन उसे अच्छी शिक्षा देने के लिए संस्थान नहीं हैं, और चूंकि अच्छी पढ़ाई नहीं है, इसलिए उसे अच्छा काम मिलने की संभावना कम है। 

इस वक्त दुनिया में सबसे ज्यादा युवा आबादी भारत में है, जो पढ़ाई या रोजगार के सीमित अवसरों को झपटने के लिए किसी भी किस्म के तरीके अपनाने को मजबूर है।अगर एक अच्छा शिक्षा तंत्र नहीं होगा, तो ये करोड़ों युवा देश के निर्माण में सहायक कैसे होंगे? अब भी वक्त है कि हम स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च बढ़ाएं, ताकि हमारी नई पीढ़ी अपनी पूरी संभावनाओं को हासिल कर सके। अगर हम अब भी आंख मूंदे रहते हैं, तो किसी का क्या दोष है?
  • श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।       
  • संपर्क  9425022703       
  • rakeshdubeyrsa@gmail.com
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